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हो गया है । अभी मैं वैद्यों को बुलाकर औषध करवाता हूँ । श्रीराम ने तुरंत ही वैद्यों को बुलवाये, मांत्रिक और तांत्रिकों को बुलवाये । औषध और मंत्रतंत्र के प्रयोग करवाये, परंतु सब कुछ निष्फल गया । श्रीराम दुःख से मच्छित हो गये। जब होश में आये, वे करुण विलाप करने लगे । विभीषण, सुग्रीव, शत्रुध्न वगैरह अयोध्या में ही थे, वे भी श्रीराम के साथ करुण आक्रन्द करने लगे। कौशल्या, सुमित्रा वगैरह माताएँ, पुत्रवधूएँ वगैरह भी बार-बार मूछित होने लगी और करुण रुदन करने लगी । अयोध्या के प्रत्येक मार्ग में, प्रत्येक घर में और प्रत्येक दुकान में शोकाद्वैत फैल गया।
उस समय श्रीराम के दो पुत्र लव और कुश, गहन शोकसागर में डूबे थे। वे गहन चिंतन में, गहन आत्ममंथन में चले गये ! हमारे पितातुल्य लक्ष्मणजी अचानक चल बसे...। क्रूर महाकाल ने उन जैसे अद्वितीय पराक्रमी वासुदेव का अपहरण कर लिया। वे कुछ भी आत्महित नहीं कर पाये..। जीवन...आयुष्य...यौवन चंचल है... विनाशी है... । आरोग्य भी चंचल है । हमें प्रमाद नहीं करना चाहिए। स्वजनों के मोह-ममत्व में उलझना नहीं चाहिए । ममत्व के बंधनों को तत्काल तोड़ डालने चाहिए । आज चाचा चल बसे, कल हम भी चले जा सकते हैं । मृत्यु कभी भी आ सकती है । इसके पूर्व गृह त्याग कर, श्रमण बन कर, चारित्रधर्म ले लेना चाहिए ।
दोनों भाइयों ने श्रीराम को अपनी भावना बता दी और नमस्कार कर चल दिया। श्री अमृतघोष मुनि के पास जाकर दीक्षा ले ली । ज्ञान-दर्शन-चारित्र
और तप की आराधना की, सभी कर्मबंधन तोड़ डाले और वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन गये। ममत्व का बोझ नीचे ले जाता है : ___ ममत्व को ही परिग्रह कहा गया है । मूर्छा कहें, ममत्व कहें या परिग्रह कहें, अर्थ एक ही है । ममत्व भारी होता है । लोहे से भी भारी । लोहे से और लकड़ी से बना जहाज तो समुद्र की सतह पर तैरता है, परंतु ममत्व-परिग्रहआसक्ति के बोझ से भरा हुआ मनुष्य संसार-सागर में डूब जाता है। नीचे...बहुत नीचे चला जाता है । संसार-सागर के बहुत नीचे सात नरक हैं । परिग्रही जीव नरक में चला जाता है । बहुत ज्यादा परिग्रही-विषयासक्त जीव सातवीं नरक में जाता है, उससे कम परिग्रही छट्ठी नरक में, उससे कम परिग्रही पाँचवी नरक में... वैसे कम-कम ममत्ववाला जीव चौथी, तीसरी, दूसरी, पहली नरक में जाता
एकत्व-भावना
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