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सीता, इस भयानक वन में मैंने तुझे अकेली क्यों छोड़ दी ?' बोलते-बोलते वे रो पड़े...और मूर्छित होकर गिर पड़े जमीन पर । श्रीराम की कैसी करुणाजनक स्थिति बनी थी ! वे बार-बार गिरते रहे, विलाप करते रहे...संतप्त बने रहे ! कारण ? परभाव का ममत्व था ! सीता के प्रति आसक्ति थी !
लक्ष्मणजी की मृत्यु के बाद भी श्रीराम की स्थिति ऐसी ही दयनीय हो गई थी। वे बार-बार मच्छित होकर जमीन पर गिर जाते थे। लक्ष्मण के ऊपर श्रीराम का अति स्नेह था, अति ममत्व था ! वे मानने को ही तैयार नहीं थे कि लक्ष्मण की मृत्यु हुई है । लक्ष्मण के मृतदेह को अपने कंधे पर लेकर अयोध्या में वे ६ महीनों तक फिरते रहे थे। कभी वे लक्ष्मण के मृतदेह को स्नान करवाते, स्वयं उनके शरीर पर चंदन का विलेपन करते, उत्तम भोजन का थाल उनके सामने रखते । मृतदेह को अपने उत्संग में लेकर मुख पर बार-बार चुंबन करते। कभी शैया पर सुलाकर उस पर पंखा ढोते । कभी अंगमर्दन करते । इस प्रकार राग से उन्मत्त होकर...विविध मोहचेष्टाएँ करते...छह महीने तक फिरते रहे । ममत्व टूटा, राम स्वस्थ हुए :
श्री सीताजी की रक्षा करते-करते मरा हुआ जटायु-पक्षी, मरकर माहेन्द्र देवलोक में देव हुआ था । श्रीराम के प्रति उनका दृढ़ स्नेह था, वह स्नेह से प्रेरित होकर श्रीराम के पास आता है और राम की रागाक्रान्त मोहमूढ दशा देखकर, उनको प्रतिबुद्ध करने, विविध उपाय करता है ।
वैसे, श्रीराम का सेनापति कृतान्तवदन भी मरकर देव बना था, वह भी श्रीराम को प्रतिबोध देने वहाँ अयोध्या में आता है । दोनों देवों ने विविध प्रयोगों से श्रीराम की मोहमूर्छा दूर की। लक्ष्मण की मृत्यु हो गई है, यह वास्तविकता समझायी, श्रीराम ने लक्ष्मण की मृत्यु की बात मान ली, तब दोनों देव, श्रीराम को प्रणाम कर, देवलोक में चले गये !
लक्ष्मण के मृतदेह का अग्निसंस्कार किया गया। श्रीराम अब संसार के प्रति विरक्त बन गये । सीता, लक्ष्मण और लव-कुश के बिना दुनिया उनके लिए उज्जड़ वीरान-सी बन गई थी । संसार की असारता का उनको वास्तविक ज्ञान हो गया था। उन्होंने शत्रुध्न को राज्य ग्रहण करने को कहा, परंतु शत्रुघ्न ने कहाः 'मैं भी आपके साथ ही दीक्षा लूँगा। तब राम ने लव के पुत्र अनंगदेव का
राज्याभिषेक किया और वे सुव्रत नाम के महामुनि के पास गये । ___ सुग्रीव, शत्रुघ्न, विभीषण, विराध वगैरह के साथ श्रीराम ने गृहवास का त्याग किया और वे अणगार बन गये । यह समाचार सारे भारत में फैल गये । सोलह | एकत्व-भावना
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