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-- 'श्रद्धा' नाम का नगर बसाया है, - प्रशम को नगर का मुख्य दरवाजा बनाया है, - संसार को किवाड़ बनाये हैं, - क्षमा को गढ़ बनाया है, - मनोगुप्ति-वचनगुप्ति-कायगुप्ति को अट्टालिका, खाई और शस्त्र बनाये
हैं,
- वीर्योल्लास को धनुष्य बनाया है, - 'पाँच समिति' को धनुष्य की डोरी बनायी है, - 'धैर्य को धनुष्य पकड़ने की मूठ (हत्था) बनायी है, - तप को बाण-तीर बनाया है ! . हे ब्राह्मण, तप के तीरों से कर्मशत्रु को मार कर मुनि संग्रामविजेता बनता है और संसार से मुक्त होता है ।
इन्द्र का चित्त आनन्दित होता है । वह कहता है : राजर्षि, वास्तुशास्त्र के अनुसार प्रासाद, विशिष्ट रचनावाले गृह इत्यादि का निर्माण करवा कर बाद में निष्क्रमण करना। राजर्षि ने कहा : हे ब्राह्मण - संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणई घरं।
जत्थेव गन्तुमिच्छिज्जा, तत्थ कुव्विज्ज सासयं ॥ ९/२६ मार्ग में वह मनुष्य घर बनाता है, जिसको अपनी यात्रा में संशय होता है । जिसने यात्रा का, गमन का निश्चय कर लिया है वह तो अपने इष्ट स्थान पर पहुँचने पर ही आश्रय करता है । हे ब्राह्मण, इसलिए मैं मुक्ति को ही आश्रय बनाने के लिए प्रयत्नशील बना हूँ।'
तब इन्द्र ने कहा : हे राजेश्वर, धनवानों को मारकर अथवा बिना मारे - चोरी करनेवाले चोरों को, तस्करों को नगर से बाहर निकाल कर, नगर का क्षेम करने के बाद जाना ! क्योंकि यह आपका राजधर्म है । इन्द्र की बात सुन कर, राजर्षि ने कहा -
असई तु मणस्सेहिं, मिच्छादंडो पजुज्जए । अकारिणोत्थ बज्झंति, मुच्चइ कारगो जणो ॥ ९/३० ॥ हे ब्राह्मण, जो निरपराधी होते हैं, उनको अज्ञान के कारण मनुष्य सजा करता है, इससे दुनिया में निर्दोष लोग दंडित होते हैं और दोषित लोग छूट जाते
| एकत्व-भावना
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