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भटकाव में प्रेरक तत्त्व है भवितव्यता : .. सर्वज्ञ परमात्मा ने हर कार्य के पीछे पाँच कारण बताये हैं । इन पाँच कारणों में एक कारण है भवितव्यता । भवितव्यता को नियति भी कहते हैं । जिस बात में कोई बदलाव, कोई परिवर्तन की शक्यता नहीं होती है, जो बात निश्चित रूप से होती ही है, उसको भवितव्यता कहते हैं । भवितव्यता के आगे पुरुषार्थ कामयाब नहीं होता है । जीवों का चार गतिमय संसार में जो भटकाव होता है, उस भटकाव में प्रेरक तत्त्व है भवितव्यता ! जीवों को चार गति में भटकना ही पड़ता है ।
प्रश्न : इतनी परवशता का कोई कारण होगा न ? ।
उत्तर : हाँ, एक कारण है - प्रत्येक जीवात्मा कर्मों से बँधा हुआ है । कर्मी का बंधन ही कारण है । और जब तक कर्मों का बंधन रहता है तब तक हर जीव को शरीर धारण करना ही पड़ता है। जैसे पिंजडे का पक्षी ! चार गतियों में जीवों के भिन्न-भिन्न प्रकार के शरीर होते हैं । शरीर के रूप, पुद्गल और रंग अलग होते हैं । किस जीव को कैसा शरीर मिलना, इसका निर्णय उस जीव के कर्म करते हैं। अनन्त काल... अनन्त परिभ्रमण... अनादि संसार में :
रात्रि की नीरवता में, एकान्त भूमिभाग पर... शान्त चित्त से संसार की वास्तविकता पर चिंतन करना होगा । चिंतन का विषय होना चाहिए संसार में जीवों का जन्म लेना और मरना । अपने आपको पूछना होगा : * ये सारे जीव कब से जनमते हैं और कब से मरते रहते हैं ? * जन्म-मृत्यु का यह चक्र चलता ही रहेगा या अन्त आ सकेगा ? * संसार आदि है या अनादि है ? * संसार की चार गतियों में सुख है या दुःख है ?
व्यक्तिगत रूप से इन प्रश्नों का समाधान ढूँढना होगा। अन्यथा अज्ञानता के अंधकार में ही जीवन समाप्त हो जायेगा और ज्यादा प्रगाढ़ अंधकार में जीव खो जायेगा । इसलिए इन चार बातों पर गंभीरता से सोचो। __पहली बात : जिस प्रकार संसार अनादि है, वैसे जीव भी अनादि है, इसलिए जन्म और मृत्यु भी अनादिकाल से है । इसका कोई प्रारंभ-काल नहीं है ।
दूसरी बात : जन्म-मृत्यु का अन्त ला सकते हो। यदि आप कर्मों के बंधन तोड़ सकते हो तो जन्म-मृत्यु का अन्त आ सकता है । आप अ-मर बन सकते | २०४
शान्त सुधारस : भाग १
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