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तिर्यंचगति में जीवों को सबसे बड़ा दुःख होता है क्षुधा का और प्यास का । उदराग्नि से जलते हुए वे जीव तीव्र दुःख अनुभव करते हैं। कार्तिकेय अनुप्रेक्षा में कहा गया है
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तिव्वतिसाए तिसिदो तिव्वविभुक्खाइ भुक्खिदो संतो । तिव्व पावदि दुःखं उयरहुयासेहिं डज्ईतो ॥ ४३ ॥
इसी 'कार्तिकेय अनुप्रेक्षा' में मनुष्यगति के दुःख बताये गये हैं । आप लोग दुःख अनुभव करते ही हैं, फिर भी दुःखों के विषय में चिंतन नहीं करते, अनुप्रेक्षा नहीं करते ! कैसे-कैसे दुःख जीवों को सहने पड़ते हैं । गर्भावस्था के दुःख, जन्म के दुःख और जन्म के बाद माता-पिता की मृत्यु हो जाती है तो पराश्रयता के दुःख, निर्धनता के दुःख... ... वगैरह दुःख, पापकर्मों के उदय से भोगने पड़ते हैं । अशाता - वेदनीय, नीच गोत्र, अशुभ नामकर्म के उदय से दुःख सहने पड़ते हैं । फिर भी अज्ञानतावश जीव नये पापकर्म करता जाता है ।
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जिन मनुष्यों को पुण्यकर्म का उदय होता है, वैसे मनुष्यों को भी इष्टवियोग और अनिष्ट संयोग के दुःख सहने पड़ते हैं ! भरत चक्रवर्ती जैसे श्रेष्ठ पुरुष को अपने ही छोटे भाई बाहुबली से हार खाने का दुःख सहना पड़ा था न ? सनत्कुमार चक्रवर्ती जैसे श्रेष्ठ पुरुष के शरीर में १६ रोग उत्पन्न हो गये थे न ? पुण्यशाली मनुष्य को भी सभी मनोवांछित सुख नहीं मिलते हैं । किसी को स्त्री का सुख नहीं होता है, किसी को पुत्र का सुख नहीं होता है, किसी को निरोगी शरीर नहीं होता है ! शरीर निरोगी होता है तो धन-धान्यादि की प्राप्ति नहीं होती है । सबकुछ प्राप्त हो भी गया, तो मौत आ जाती है !
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किसी की पत्नी दुराचारिणी होती है, तो किसी का पति व्यभिचारी होता है । किसी का पुत्र जुआ खेलता है, शराबी होता है, किसी का भाई शत्रु जैसा व्यवहार करता है, किसी की पुत्री दुराचारिणी होती है। वैसे, किसी का पुत्र अच्छा है, गुणवान है, परंतु तरुणवय में मर जाता है। किसी को पत्नी अच्छी होती है, परंतु उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है । किसी के पास विपुल धन-संपत्तिहोती है, परंतु आग... भूकंप आदि से सर्वनाश हो जाता है ।
आप देखते हो, सुनते हो कि धनवान निर्धन हो जाते हैं, निर्धन धनवान हो जाते हैं । राजाओं के राज चले गये और निम्न जाति के लोग बड़े बड़े पदों पर आरूढ़ हो जाते हैं । जो वैरी होते हैं वे मित्र बन जाते हैं और मित्र वैरी बन जाते हैं ।
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शान्त सुधारस : भाग १
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