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नाचता है, अभिनय करता रहता है । अपन सब नट हैं, अभिनेता हैं ! अनन्त काल से अभिनय कर रहे हैं । कब अन्त आयेगा, हमें पता नहीं है । ___ कभी-कभी सोचें कि कब इस भवनाटक में नाचने का अंत आयेगा ? नाचतेनाचते थक गये । अब नहीं नाचना है संसार के रंगमंच पर । इस वर्तमान मनुष्यजीवन में भी कैसे-कैसे रूप बनाकर नाचते हैं ? बचपन...यौवन...और बुढ़ापा...कैसा व्यतीत होता है ? कैसे-कैसे रूप बनाते पड़ते हैं ? आखिर मृत्यु ! मृत्यु भी एक प्रकार का रूप ही होता है । मृत्यु के बाद नया जन्म लेना होगा ! पता नहीं, किस गति में जन्म लेना होगा । ___ इस संसार-परिभ्रमण से मन उद्विग्न होना चाहिए । संसार-परिभ्रमण के मुख्य हेतु है विषय और कषाय । विषय-कषायों को प्रतिक्षण शत्रु समझें, मित्र नहीं । विषय-कषायों का साथ नहीं ले, सहारा नहीं ले; सहारा लें मात्र देवगुरु और धर्म का । तभी संसार-परिभ्रमण का अंत आ सकता है । संसार की भयानकता का संवेदन होना चाहिए । इसलिए आप लोग “समरादित्य-महाकथा" अवश्य पढ़ें।
इस प्रकार आज तृतीय संसार-भावना की चार गाथा (काव्य) का विवेचन किया। शेष चार गाथा का विवेचन कल करूँगा । आज बस, इतना ही।
ससार भावना
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