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शान्त सुधारस
प्रवचन : २१
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: संकलना :
मैं आत्मा
आतम सर्व समान ।
हम सिद्धों के साधर्मिक
आत्मा ही भगवान ।
एकत्व - भावना में दीनता नहीं है । आत्मा के अलावा सब कुछ कल्पना । मैं नहीं हूँ नाऽहम आत्मसाधक को परिचय बाधक - घातक । परद्रव्य को स्वद्रव्य मानना बड़ी भूल । परस्त्री को स्वस्त्री मानना दुःखदायी ।
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★ कमांडर नाणावटी और प्रेम आहुजा
जीवन में परद्रव्य का प्रवेश, अनर्थ का मूल ।
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