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थी । कुबेरसेना ने एक पुत्र-पुत्री के जोड़े को जन्म दिया । पुत्र का नाम रखा कुबेरदत्त और पुत्री का नाम रखा कुबेरदत्ता ।
दस दिन तक उन दोनों को कुबेरसेना ने स्तनपान करवाया । बाद में एक मजबूत पेटी में गद्दी बिछाकर दोनों को उसमें सुला दिया। दोनों के पास उनके नाम की सोने की अंगूठी बनवाकर रख दी । पेटी बंद करके यमुना नदी के पानी में बहा दी । वह पेटी बहती-बहती शौरीपुरी नगरी के किनारे पर पहुंची। __ सबेरे का समय था । शौरीपुरी नगरी के दो युवान श्रेष्ठी घूमने के लिए यमुना नदी के किनारे पर आये हुए थे। उन्होंने नदी के प्रवाह में बहती हुई रत्नजड़ित कीमती पेटी को देखा । उन्हें बड़ी ताज्जुबी हुई । उन्होंने पेटी बाहर निकाली। दोनों ने आपस में मशविरा किया : 'पेटी में से जो भी निकलेगा, वह अपन आधा-आधा बाँट लेंगे। उन्होंने पेटी खोली । दो बच्चों को सोये हुए देखा । दोनों बच्चे सुंदर-सलोने थे । एक ने लड़के को ले लिया, दूसरे ने लड़की ली। दोनों ने नाम की सोने की अँगुठियाँ भी ले ली। बच्चों को लेकर वे अपनेअपने घर चले गये । बच्चे पुण्यशाली थे, इसलिए उनका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार के साथ होने लगा। ___ कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता पढ़-लिखकर बड़े हुए। दोनों श्रेष्ठियों ने इन दोनों की जोड़ी जमेगी यों सोचकर दोनों की शादी कर दी । भाई-बहिन पति-पत्नी बन गये। दोनों के पास अपने-अपने नाम की अंगठी थी। दोनों पति-पत्नी जरूर हुए, परंतु दोनों को एक दूजे के प्रति कोई सेक्सी-कामवासना नहीं जगती है । शारीरिक आकर्षण पैदा नहीं होता है । __एक दिन दोनों चौपड़ का खेल खेल रहे थे। पासे डालते हुए अचानक कुबेरदत्त की अंगुली में से अँगूठी सरक कर कुबेरदत्ता की गोद में गिरी । कुबेरदत्ता ने अँगूठी उठायी और आश्चर्य से अपनी अँगूठी के साथ मिलाई, वह सोच में पड़ गई । उसने सोचा : ये दोनों अँगूठी एक-सी है । क्या हम दोनों भाईबहन तो नहीं होंगे ? क्या इसीलिए हमें एक-दूजे के लिए वासनाजन्य आकर्षण नहीं जगता है ?' उसने कुबेरदत्त से कहा : हम इस बारे में अपने माता-पिता से पूछे तो ? कुबेरदत्त ने हाँ कही । कुबेरदत्त ने अपनी माँ से पूछा :
माँ सच-सच बताना । हमारा सच्चा रिश्ता क्या है ? हमारे दोनों के हाथ में एक-सी अँगुठियाँ क्यों हैं ?' माँ ने उनसे नदी में से पेटी मिलने की सारी बात बता दी । कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता आश्चर्य एवं ग्लानि से स्तब्ध रह | २१४
शान्त सुधारस : भाग १
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