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थी भी साध्वी के वेश में ! कुबेरसेना रोजाना अपने नवजात पुत्र को साध्वी के पास छोड़ जाती है । साध्वीजी हँसती है, शिशु को हँसाती है और एक लोरी गाती जाती है।
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भाई तूं बेटो माहरो देवर वली भत्रीज,
पितराई ने पौत्र - इम तुजथी संबंधना बीज... १ भाई-पिता-मातामह, भर्ता बेटो ससरो तेह, छ संबंध धरावुं हुं ताहरा जनकथी हुँ सस्नेह...२ माता पितामही भोजाई वहु सासु वली शोक, छ संबंध धरावे मुजथी माता तुज अवलोक...३
(जंबूस्वामी रास) साध्वीजी ऐसे तार स्वर में लोरी सुनाती है कि कुबेरदत्त और कुबेरसेना भी सुन सके। रोजाना गाती है, बार-बार गाती है । कुबेरदत्त को उसका अर्थ समझ में नहीं आता है । एक दिन उसने साध्वीजी से पूछ ही लिया - पूज्या, आप मेरे पुत्र को रोजाना जो लोरी सुनाती हो, उसका अर्थ मुझे समझ में नहीं आता है । आप जैसे कि कुछ अटपटा-सा बोल रही हो, असंबद्ध बोल रही हो, वैसा मुझे लगता है ।
साध्वी कुबेरदत्ता जिस अवसर की राह देख रही थी, वह अवसर आ गया था । उन्होंने कहा 'कुबेरदत्त, तेरे इस पुत्र के साथ मेरे छह प्रकार के नाते हैं । तेरे साथ भी मेरे छह प्रकार के रिश्ते हैं और इस बच्चे की माँ के साथ भी मेरे छह प्रकार के संबंध हैं ! यों सब मिलाकर अठारह प्रकार के नाते हैं तुम तीनों के साथ !'
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कुबेरदत्त साध्वीजी की बात सुनकर आश्चर्य से चकित रह गया। उसने कहा : 'आप कृपा करके मुझे वे अठारह प्रकार के नाते समझाइये । साध्वीजी ने कहा :
१. इस बच्चे की और मेरी जनेता एक ही होने से यह मेरा भाई होता है ।
२. यह बालक मेरे पति का पुत्र होने से मेरा भी पुत्र कहा जा सकता है । ३. यह बालक मेरे पति का छोटा भाई होने से मेरा देवर होता है । (मेरे पति को एवं इस बच्चे को जन्म देनेवाली माँ एक ही कुबेरसेना है ।)
४. मेरे भाई का बेटा होने से यह मेरा भतीजा होता है ।
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शान्त सुधारस : भाग १
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