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गये । कुबेरदत्त ने कहा : ‘अच्छा हुआ कि हमारा शारीरिक संबंध नहीं हुआ, वर्ना बड़ा अनर्थ हो जाता । हम निर्मल रहे, यह खुशकिस्मती है ।
कुबेरदत्ता उसके पालक पिता के वहाँ चली गई । कुबेरदत्त का मन भी बुझाबुझा-सा रहने लगा। एक दिन वह भी व्यापार करने के लिए शौरीपुरी छोड़कर चला गया। कुबेरदत्ता का मन संसार से विरक्त बन गया था। उसने एक दिन जैन दीक्षा ले ली, वह साध्वी बन गई। उग्र तपश्चर्या करके उसने अवधिज्ञान प्राप्त किया । ___ कुबेरदत्त व्यापार करने के लिए मथुरा पहुंचा था । मथुरा में वह कुबेरसेना वेश्या के अतिथिगृह में ठहरा था। उसने कुबेरसेना को ढेरों संपत्ति देकर उसे अपनी पत्नी बना ली थी । वह उसके साथ रंगराग में डूब गया था। मथुरा में व्यापार करते हुए उसने लाखों रुपये भी कमाये । उधर साध्वी कुबेरदत्ता ने अपने अवधिज्ञान के प्रकाश में जानना चाहा कि कुबेरदत्त कहाँ है और क्या करता है। उसने मथुरा में कुबेरसेना के साथ भोगविलास में लीन कुबेरदत्त को देखा । वह काँप उठी । उसका हृदय चित्कार उठा । ओह ! अपनी सगी माँ के संग भोग-विलास ? खुद को जन्म देनेवाली माँ के साथ रंगराग का जीवन ? बड़ा भयंकर अनर्थ हो गया, यह तो। वे एक-दूसरे को पहचानते नहीं हैं । मैं जल्दी-जल्दी वहाँ पर जाऊँ और अनर्थ को रोकूँ ।
साध्वी कुबेरदत्ता विहार कर मथुरा पहुँची । इस बीच कुबेरसेना ने एक पुत्र को जन्म दिया था। साध्वी कुबेरदत्ता सोचती है : इन दोनों को समझाना किस तरह ? उपदेश दूँ कैसे? धर्मशास्त्र का उपदेश तो ये सनेंगे नहीं। और ही कोई तरकीब खोजनी होगी । यथार्थता का बोध कराना ही होगा। साध्वी कुबेरदत्ता, कुबेरसेना के घर पर पहुँची । साध्वी ने कुबेरसेना से कहा: मैं तुम्हारे इस नवजात शिशु को अच्छे संस्कार दूँगी । उसे मीठी-मीठी लोरियाँ सुनाऊँगी । मेरे पास वह खेलता रहेगा। क्या मैं तुम्हारे घर में रह सकती हूँ ? बच्चा मेरे पास रहेगा तब तक तुम्हें भी अवकाश मिल जायेगा। कुबेरसेना ने साध्वीजी की विनयभरी मधुर वाणी सुनी । साध्वीजी का सौम्य, शीतल, सुंदर चेहरा देखा । उसने साध्वी को अपने घर में रहने की इजाजत दे दी। अन्य साध्वियों के साथ कुबेरदत्ता ने वहाँ पर निवास किया ।
कुबेरदत्त, अपनी बहन कुबेरदत्ता को साध्वीरूप में पहचान नहीं पाता है । कुबेरदत्ता ने उग्र तपश्चर्या करके शरीर को कृश कर दिया है । और फिर वह | संसार भावना
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