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उसने मुझे उसकी भव्य हवेली में रखा ।
एक दिन उसके साथ रथ में बैठकर नगर की ओर जा रहा था, वहाँ एक हाथी दौड़ता हुआ सामने आया। हाथी राजा श्रेणिक का था । वह उन्मत्त बन गया था। मैं रथ में से नीचे उतर गया । मैं हाथी को वश करने की विद्या जानता था। मैंने तर्त ही हाथी को वश कर लिया । नगरजनों ने मेरी बहुत प्रशंसा की । मगधसेना बहुत प्रसन्न हुई । हम हवेली पर पहुँचे । मगधसेना ने मुझे प्रेम से भोजन कराया और कहा : आज मैं महाराजा श्रेणिक के राजदरबार में नृत्य करने जानेवाली हूँ, आप साथ चलोगे न ? वहाँ बहुत लोग देखने आयेंगे।' मैने कहा : 'हे प्रिये, आज मुझे बहुत नींद आ रही है, इसलिए मैं नहीं आऊँगा।
मगधसेना राजसभा में चली गई। उसके जाने के बाद मुझे मगमांस याद आया । मेरी पत्नी याद आई । मेरा मन व्यथित-विह्वल बन गया। पत्नी की इच्छा पूर्ण करने की इच्छा प्रबल हो गई । मैं उठा और राजमहल की ओर चल पड़ा।
मैं पहले राजसभा में गया । वहाँ मगधसेना का नृत्य चल रहा था । लोग नृत्य देखने में लीन थे । मैं गुप्तरूप से राजमहल में घुस गया । मैंने मृगमांस ले लिया और गुप्त मार्ग से निकलने लगा कि द्वाररक्षकों ने मुझे पकड़ लिया। द्वाररक्षक मुझे लेकर राजसभा में आये । मेरे विषय में राजा को शिकायत की। राजा नृत्य देखने में तल्लीन था, उसने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया । मैं वैसे ही खड़ा रहा कि मगधसेना की दृष्टि मुझ पर गिरे । नृत्य पूर्ण होने पर राजा ने मगधसेना को तीन वचन माँगने को कहा । उस समय मगधसेना ने मेरे सामने दृष्टि करते हुए कहा : अरे, मृगमांस का अभिलाषी और मेरे प्राणों की रक्षा करनेवाला मेरा प्राणनाथ कहाँ है ?'
मैं बोला : 'हे प्रिये, मैं यहाँ ही खड़ा हूँ | उसी समय मगधसेना ने राजा को नमन कर कहा : 'हे नरनाथ, आपने मुझे तीन वचन माँगने को कहा है, तो मैं पहला वचन यह माँगती हूँ कि इस मृगमांस की चोरी करनेवाले अपराधी को मुक्त कर दिया जायं और दूसरा वचन यह माँगती हूँ कि वही पुरुष मेरा पति हो । राजा ने मगधसेना को दोनों वचन दिये । मगधसेना का मन प्रसन्न हो गया, मैं भी बहुत खुश हुआ। हम दोनों घर पर पहुँचे । भरपूर आनंद-प्रमोद में हमारे दिन व्यतीत होने लगे। परंतु एक दिन मुझे मेरा घर और मेरी पत्नी याद आई । मैंने मगधसेना को कहा : यदि तू मुझे इजाजत दें, तो मैं मेरे घर जाना
संसार भावना
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