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मैंने दिल खोलकर सारी बात कह दी । उसने मेरी बात सुनने के बाद कहा : जब मैं वह बांस उठाकर चलता था तब मेरे मन में भी ऐसा ही पापविचार आता था । तुमने अच्छा किया। अर्थ ही अनर्थ का मूल होता है !
हम लोग पुनः निर्धन हो गये । परंतु अब हमें निर्धनता का दुःख नहीं था । क्यों कि स्वेच्छा से संपत्ति का त्याग करने पर दुःख नहीं होता है । मंत्रीश्वर, हम दोनों भाई घर पहुँचे । दूसरी ओर एक अजीब सी घटना घटी। जिस बांस को हमने सरोवर में फेंक दिया था, उस बांस को एक मगरमच्छ निगल गया था । वह मगरमच्छ, एक मच्छीमार की जाल में फंस गया और मच्छीमार उसको अपने घर ले गया। ___ हम लोग मांसाहारी थे । हमारे घर पर मेहमान आये थे । मेरी बहन भोजन के लिए उस मच्छीमार के घर से उसी मगरमच्छ को खरीद कर ले आयी, कि जो बांस की लकड़ी निगल गया था ! मेहमान ज्यादा थे, इसलिए बहन बड़ा मगरमच्छ खरीद कर ले आयी थी। उसने उस मगरमच्छ को चीर डाला । पेट में से वह बांस निकला ! उसने बांस को खोला । भीतर से रत्न, मणी वगैरह निकल आये । बहन अत्यंत हर्षित हो गई । हमारी माँ ने पूछा : बेटी, क्या है बांस में ? क्यों इतनी खुश हो गई? बहन ने बांस को छपा दिया और बोली : कुछ नहीं है माँ !' परंतु माँ उसके पास जाने लगी, तब बहन ने धन के लोभ से प्रेरित होकर, पास में जो मूशल पड़ा था, वह उठाकर माँ को मार दिया । माँ उसी समय मर गई ।
उसी समय हम दोनों भाई घर में आये | बहन घबरा गई। वह खड़ी हो गई। उसके वस्त्र में से वह बांस नीचे गिर पड़ा। अहो, यह तो वही पोला बांस है, जिसमें हमने रल भरे थे, बाद में हमारी बुद्धि बिगड़ी थी और हमने पानी में फेंक दिया था ! यह बांस यहाँ कैसे आ गया ? हमने माँ का मृत देह देखा, बहन को देखा...'अर्थ ही अनर्थ का मूल है । हमें संसार के प्रति वैराग्य हो गया। माँ का अग्निसंस्कार कर, घर बहन को सोंपकर, हम दोनों भाइयों ने आचार्यदेव के पास चारित्रधर्म स्वीकार कर लिया ।
मंत्रीश्वर, अभी उपाश्रय में प्रवेश करते समय, वह दृश्य - बहन माँ को मूशल मारती है – सामने आ गया और मुँह से 'भयं' शब्द निकल गया । __ मुनिराज की व्यथापूर्ण कथा सुनकर अभयकुमार व्यथित हो गये । विषयतृष्णा की, धनलालसा की भयानकता सोचते-सोचते वे अपनी जगह चले गये । वे । संसार भावना
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