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हे पूज्य, अतिभयम्' शब्द क्या आपके मुख से निकला ?' मुनिराज ने कहा : हाँ, मंत्रीश्वर, मेरे मुख से निकल गया। महामंत्री ने कहा : 'प्रभो, श्री जिनधर्म की शरण में रहे हुए मुनि को किसका अति भय ? मुनिराज तो निर्भय होते हैं | मुनिराज ने कहा : ___ मंत्रीश्वर, जिनधर्म की शरण में आने के बाद आत्मा निर्भय ही होती है । परंतु मेरे गृहस्थ जीवन की एक अति भयानक घटना स्मृति में आयी और 'अतिभयम्' शब्द मेरे मुँह से निकल गया । ___ महामंत्री ने कहा : गुरुदेव, ऐसी कौन-सी घटना आपके जीवन में घटी ? यदि आप कहने की कृपा करेंगे तो मेरी वैराग्यभावना दृढ़ होगी। ___ दो मुनिवरों की व्यथापूर्ण जीवनकथा सुनकर अभयकुमार का वैराग्यभाव बढ़ ही रहा था । आज की रात, मानो कि ऐसी जीवनकथा सुनने की ही रात थी। अभयकुमार की तत्त्वदृष्टि, मुनिवरों की जीवनकथा में संसार की वास्तविकता का दर्शन करती थी । मोक्षमार्ग की यथार्थता का दर्शन करती थी। __धनद मुनिवर के चरणों में अभयकुमार विनय से बैठ गये । धनदमुनि ने अपने जीवन की... अतीतकाल की स्मृति को झकझोरा । उन्होंने कहा :
उज्जयिनी नगरी के पास एक गाँव है । उस गाँव में प्रिय श्रेष्ठी मेरे पिता और गणसंदरी मेरी माता । मेरा नाम धनद । मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छे संस्कार दिये । जब मैं यौवन में आया, तब मेरे पिता ने उज्जयिनी की एक कन्या के साथ मेरी शादी कर दी। शादी के कुछ दिनों के बाद, मेरी पत्नी उसके पितृगृह गई थी । उसको लेने मैं पैदल ही उज्जयिनी की ओर चला । संध्या का समय था । मेरे पास तलवार थी।
उज्जयिनी में प्रवेश करने का मार्ग, स्मशान के पास से गुजरता था । मैं जब स्मशान के पास पहुंचा, तो मैने वहाँ एक भयानक दृश्य देखा । 'क्या देखा गुरुदेव ?' महामंत्री बीच में बोल उठे ।
वहाँ एक मनुष्य को सूली पर चढ़ाया हुआ था । वह मर गया था। उसके पास एक औरत बैठी थी और करुण स्वर से रो रही थी। मैं वहाँ खड़ा रह गया । मुझे उस स्त्री के ऊपर दया आ गई । मैंने पूछा : औरत, तू क्यों रोती है ?' उसने कहा : 'मैं दुःखी हूँ। मैंने पछा : 'तुझे किस बात का दुःख है ?' वह बोली : तुझे कहकर क्या करना ? जो पुरुष मेरा दुःख दूर कर सके, उसे कहना उचित है। मैंने कहा : 'मैं तेरा दुःख दूर करूँगा । उस स्त्री ने कहा : | संसार भावना
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