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मुनिराज को कुछ संकोच हुआ। उन्होंने कहा : मंत्रीश्वर, अचानक ही मेरे मुँह से भयं शब्द निकल गया ! यहाँ उपाश्रय में कोई भय नहीं है। यह तो मेरी पूर्वावस्था की, गृहस्थावस्था की एक घटना स्मृतिपथ में आयी... और मेरे मुँह से भयं शब्द निकल गया ।
हे मुनिवर, आपकी पूर्वावस्था की सत्य घटना क्या आप मुझे सुनायेंगे ? मुनिराज ने कहा : अवश्य सुनाऊँगा । हम उपाश्रय के बाह्य भाग में बैठे ! शिवमुनि और अभयकुमार उपाश्रय के एकांत भाग में जाकर बैठे । निरव शांति थी। आत्माओं की पवित्रता थी, प्रसन्नता थी। स्वच्छ आकाश था। चंद्र की चाँदनी पृथ्वी पर बरस रही थी। मुनिराज ने अपने जीवन की रोमांचक कथा सुनाना शुरू किया। ___ मंत्रीश्वर, मेरा जन्म उज्जयिनी नगरी में हुआ था । हम दो भाई थे । शिव
और दत्त । हमारा परिवार निर्धन था । हम दोनों भाई बड़े हुए । निर्धनता का, दरिद्रता का दुःख हमसे सहा नहीं गया । हमने धनार्जन के लिए दूसरे देशप्रदेश में जाने का निर्णय किया । हम सौराष्ट्र में पहुँचे । वहाँ हमने बहुत धन कमाया । घर वापस जाने को तैयार हुए । हमने सभी रुपयों का जवाहिरात खरीद लिया । यानी हीरा, रत्न, मोती वगैरह ले लिया और एक पोले बांस में भर दिया । बांस को लकड़ी की तरह उठाकर हमने चल दिया ।
बांस भारी हो गया था। इसलिए कभी मैं उठाता, कभी मेरा भाई दत्त उठाता । जब मैं बांस उठाता तब मेरे मन में एक पापविचार आ जाता था - यदि मैं इस दत्त को मार डालूँ तो संपूर्ण धन मेरा हो जायं ! हम चलते रहे । रास्ते में पानी का सरोवर आया । हमने सरोवर का पानी पिया और स्नान भी कर लिया । वहाँ पुनः मुझे वह दुष्ट विचार आया - इस सरोवर में दत्त को ड्रबो , और मैं अकेला संपत्ति का मालिक बन जाऊँ ! मैं विह्वल बन गया, मेरा मन चंचल हो गया। मैंने मेरे छोटे भाई दत्त की ओर देखा । उसका निर्दोष चेहरा देखते ही मेरे दुष्ट विचार के प्रति घोर घृणा पैदा हो गई । 'अरे, इस तुच्छ धन के लोभ से मेरे छोटे भैया को मैं मार डालूँ क्या ? नहीं, नहीं, इस धन की वजह से ही मुझे ऐसा अधम-पापविचार आता है... इसलिए यह धन ही नहीं चाहिए !' मैंने वह बांस उस सरोवर में फेंक दिया । मेरा भाई दत्त तत्काल खड़ा हो गया... और बोला : अरे भाई, तुमने यह क्या कर दिया ? पूरा धन पानी में डाल दिया ?'
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शान्त सुधारस : भाग १
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