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बाल संभूतमुनि को छू गये । बालों का स्पर्श होते ही मुनि तत्काल रोमांचित हो गये । राजा अपने अंतःपुर की रानियों के साथ नगर में चला गया । ___ संभूतमुनि अपने मन का निग्रह नहीं कर सके । और वैसे भी कामदेव तो सदैव जीव का छिद्र देखता ही रहता है । संभूतमुनि ने सोचा : जिस स्त्रीरत्न के बालों का स्पर्श इतना सुखद है, मनभावन है, उसके शरीर का स्पर्श...सर्वांग शरीर का स्पर्श कितना सुखदायी होता होगा ? मुझे ऐसी रानी चाहिए । ऐसी रानी चक्रवर्ती राजा की ही होती है । मैं यदि मेरी तपश्चर्या का नियाणा कर दूँ, तो आनेवाले जन्म में चक्रवर्ती बन सकता हूँ और मुझे ऐसा स्त्रीरत्न मिल सकता
___संभूतमुनि ने अपने मन के विचार, नियाणा करने की इच्छा चित्रमुनि को कह सुनायी । चित्रमुनि ने कहा : तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो । जो तपश्चर्या मोक्ष का फल देनेवाली है, उस तपश्चर्या से तुम मनुष्यलोक के बिभत्स वैषयिक सुख की कामना करते हो ? मत करो ऐसी कामना ! संसार में भटक जाओगे । क्या तुम नहीं जानते कि नियाणा कर, माँगा हुआ भौतिक सुख मिल तो जाता है, परंतु चारित्रधर्म नहीं मिलता है । भौतिक सुखों में मोहमूढ बनकर जीव दुर्गति में चला जाता है ? तुम ज्ञानी होकर ऐसी गंभीर भूल मत करो । ___ संभूतमुनि के मन पर प्रबल विषयेच्छा छा गयी थी । चित्रमुनि की प्रेरणा का कोई असर नहीं हुआ। संभूतमुनि ने नियाणा कर ही लिया। मैंने जो दुष्कर तप किया है, उस तप का यदि मुझे फल मिलने का हो तो मुझे आनेवाले जन्म में स्त्रीरत्न की प्राप्ति हो । मैं चक्रवर्ती राजा बनूँ ।' __ फिर भी, चित्रमुनि ने संभूतमुनि को कहा : तुम मिथ्या दुष्कृत देकर नियाणा छोड़ दो। मेरा कहा मानो । तुम जैसे ज्ञानी और तपस्वी मुनि के लिए यह नियाणा सर्वथा अनुचित है।
परंतु संभूतमुनि ने नियाणा का त्याग नहीं किया।
दोनों मुनि का आयुष्यकर्म पूर्ण होता है । मृत्यु होती है । दोनों की आत्मा पहले देवलोक में उत्पन्न होती है ।
आज, बस इतना ही।
अशरण भावना
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