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भी संयमी कहलाते हैं, वे दीर्घकालपर्यंत नरकादि दुर्गति में विनिपात पाते हैं । * जिस प्रकार पीया हुआ जहर, गलत ढंग से पकड़ा हुआ शस्त्र, अविधि से
की हुई मंत्रसाधना मनुष्य को मारती है; वैसे शब्दादि विषयों की लंपटता,
द्रव्यमुनि का दुर्गति में पतन करवाती है । * जो द्रव्यमुनि लक्षणशास्त्र एवं स्वप्नशास्त्र का प्रयोग करता है, जो द्रव्यमुनि
अष्टांग ज्योतिष का निमित्त एवं संतानादि के लिए प्रयोग करता है; इन्द्रजाल, जादू, मंत्र, तंत्र, विद्यारूप आश्रवों का सेवन करता है; उस द्रव्यमुनि को अनाथ
- अशरण समझना। * मिथ्यात्व से आहत और उत्कृष्ट अज्ञान से वह द्रव्यमुनि शीलहीन बनकर, सदा दुःखी बनकर, तत्त्वविपरीतता पाकर, चारित्र की विराधना कर, सतत नरक-तिर्यंच योनियों में जन्म-मरण करता है । इस प्रकार साधु की विविध अनाथता - अशरणता बतायी है । अनाथ - अशरण बने हुए द्रव्यमुनि को दुर्गति में जाना ही पड़ता है । उसको कोई नहीं बचा सकता है, यह उसकी अशरणता है-अनाथता है । संभूतमुनि : नियाणा : चक्रवर्ती : सातवीं नरक :
जब द्रव्यमुनि की अनाथता -- अशरणता की बात बतायी है, तब एक दृष्टांत सुनाकर उस बात को पुष्ट करता हूँ। वह दृष्टांत है ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का । कहानी वैसे तो विस्तृत है, परंतु मैं संक्षेप में बताऊँगा। क्योंकि मुझे तो जीव की अशरणता बताना है। ___ काशी में भूतदत्त नाम का चांडाल रहता था। बड़ा समृद्धिवाला था। उसके दो पुत्र थे : चित्र और संभूत ।
काशी का राजा था शंख । उसका मंत्री था नमुचि । एक बार नमुचि से बड़ा अपराध हो गया । राजा ने नमुचि को मार डालने के लिए भूतदत्त चांडाल को सोंप दिया । नमचि ने भूतदत्त को कहा : कैसे भी करके तू मुझे बचा ले। भूतदत्त ने कहा : यदि तूं मेरे दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा दें तो मैं तेरी रक्षा करूँ । नमुचि मान गया । भूमिगृह में गुप्त रूप से नमुचि ने चित्र और संभूत को पढ़ाना शुरू किया । गीत-संगीत-नृत्य आदि कलाएँ भी सिखाने लगा। कुछ वर्ष तक यह उपक्रम चलता रहा । परंतु नमुचि का भूतदत्त की पत्नी के साथ संबंध हो गया । वे व्यभिचार-सेवन करने लगे । एक दिन भूतदत्त को यह पापलीला मालुम हो गई । उसने नमुचि को मार डालने का निर्णय
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अशरण भावना
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