________________
है, वह अनाथ - अशरण होता है । * जो जीवात्मा रसगारव, ऋद्धिगारव और शातागारव में लीन रहता है, वह अनाथ
- अशरण होता है। * जो जीवात्मा ज्ञानविराधना, दर्शनविराधना और चारित्रविराधना करता रहता
है, वह अनाथ – अशरण होता है । * जो जीवात्मा आर्तध्यान और रौद्रध्यान करता रहता है, धर्मध्यान नहीं करता __है, वह अनाथ - अशरण होता है । * जो जीवात्मा पाँच इन्द्रियों के विषयों में लुब्ध होता है, वह अनाथ – अशरण
होता है । साधु भी अनाथ – अशरण : कैसे ?
उत्तराध्ययन-सूत्र में अनाथीमुनि ने राजा श्रेणिक को साधु-श्रमण की भी अनाथता - अशरणता बतायी है ! समझने जैसी बातें हैं। यह अनाथता-अशरणता परलोक दृष्टि से बतायी गई है । अनाथिमुनि ने कहा : । * हे राजन, निर्ग्रन्थ धर्म की प्राप्ति होने पर भी निःसत्व मनुष्य अपने आचारपालन में शिथिल बनते हैं, वे स्व-पर की रक्षा करने में समर्थ नहीं होते हैं, यह
उन जीवों की अशरणता है । * प्रव्रज्या लेने के बाद जो साधु प्रमाद की वजह से महाव्रतों का अच्छी तरह
पालन नहीं करता है, आत्मानुशासन नहीं करता है, रसासक्त होता है, वह
समूल राग-द्वेष का उच्छेद नहीं करता है, यह उसकी अशरणता है ।। * जो साधु पाँच समिति का पालन नहीं करता है, वह मोक्षमार्ग का अनुसरण
नहीं कर सकता है, यह उसकी अनाथता है । * जो साधु केशलुंचन करता है, परंतु संयमानुष्ठान नहीं करता है, तप और नियमों
से भ्रष्ट होता है, वह अनाथ – अशरण बन संसार में परिभ्रमण करता रहता
* जिसमें साधुता के भाव नहीं होते, जो साधुता के आचारों के पालन में शिथिल होते हैं, वे द्रव्यसाधु कहलाते हैं । द्रव्यमुनि असार होते हैं, निर्गुण होते हैं, वे सर्वत्र उपेक्षित होते हैं । वे ज्ञानीपुरुषों की दृष्टि में मूल्यहीन होते हैं । ऐसे द्रव्य मुनि सरल जीवों को ठगते हैं। वे अशरण बनकर संसार में भटकते
* केवल उदरभरण के लिए जो साधुवेश धारण करते हैं, असंयमी होते हुए
१६६
शान्त सुधारस : भाग १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org