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सामंत राजा मेरी आज्ञा मानते हैं। मेरे पास विपुल समृद्धि है, मेरा अद्वितीय ऐश्वर्य है । मेरे पास उत्कृष्ट संपत्ति है और प्रजाजनों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाला मैं हूँ, फिर मैं अनाथ कैसे ? हे मुनि, जिसके पास कुछ भी नहीं होता है वह अनाथ कहलाता है । मैं सर्वसंपत्ति का नाथ हूँ, मैं अनाथ नहीं हूँ । हे आर्य, आप असत्य नहीं बोले।
हे राजन्, मैंने किस अर्थ में, किस अभिप्राय से अनाथ' शब्द का प्रयोग किया है, यह संदर्भ आप नहीं जानते ! अनाथता और सनाथता के मूल कारण
आप नहीं जानते । हे राजेश्वर, मैंने मेरे लिये जो अनाथ' शब्द का प्रयोग किया, उसका कारण आप सुनें, चित्त को स्थिर कर सुनें । अनाथीमुनि का आत्मवृत्तांत :
मैं कौशंबीनगरी का निवासी था। मेरे पिता के पास कुबेर के समान संपत्ति थी। मैं जब युवावस्था में आया, तब एक सुंदर और गुणनिधान लड़की से मेरी शादी कर दी थी। मैं संसार के श्रेष्ठ सुख भोगता था । ___ एक दिन मेरी आँखों में तीव्र दर्द उत्पन्न हुआ। मेरे शरीर के भीतर सभी अवयवों में तीव्र दाह पैदा हो गया । संपूर्ण शरीर में जलन पैदा हो गई । जैसे कोई दुष्ट शत्रु कान-नाक वगैरह इन्द्रियों में तीक्ष्ण शस्त्र-प्रहार करे और जो पीड़ा हो, वैसी मेरी नेत्रवेदना थी। ___ कमर के बाहर और भीतर, वक्षःस्थल के बाहर और भीतर एवं मस्तक में मुझे घोर वेदना हो रही थी । एक क्षण भी मुझे चैन नहीं था। एक पल भी मुझे सुख नहीं था। मेरे पिता, मेरी माता, मेरी पत्नी, मेरे भाई-बहन... कोई भी मुझे मेरी इस घोर-तीव्र वेदना से बचा नहीं सकते थे। ___ मेरे अति पुत्रवत्सल पिता ने शास्त्रकुशल वैद्य बुलाये, औषध मंगवाये, अनेक परिचारक उपस्थित किये। वे वैद्यराज मेरी चिकित्सा करने लगे, परंतु मुझे रोगमुक्त नहीं कर पाये, यह मेरी पहली अनाथता थी ।
मेरे पिता का मेरे प्रति अगाध प्रेम था, वैद्यों ने मेरे लिए जो जो मूल्यवान् औषध मंगवाये, सभी औषध, सभी पदार्थ लाकर दिये, तो भी पिताजी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर पाये, यह मेरी दूसरी अनाथता थी । । ___ हे राजेश्वर, पुत्रवत्सल मेरी प्यारभरी माता, मेरे दुःख से अति शोकार्त बनी हुई थी, वह भी मुझे रोगमुक्त नहीं कर सकी, यह मेरी तीसरी अनाथता थी।
अशरण भावना
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