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जीवन से लगाव नहीं रखना है :
जो चंचल हो, अस्थिर और अनित्य हो, उससे लगाव नहीं रखना चाहिए । लगाव जैसे नहीं रखना है, वैसे गर्व-अभिमान भी नहीं करना है ! शरीर का अप्रतिम रूप, शरीर का अतुल बल... भी अस्थिर और अनित्य होता है । उस पर भी कभी अभिमान नहीं करना है ।
शरीर का, जीवन का, धार्मिक-आध्यात्मिक विकास में उपयोग करना है, परंतु अभिमान नहीं करना है । यह शरीर, यह जीवन कभी भी धोखा दे सकता है । यदि उस पर लगाव होगा, ममत्व होगा तो दुःखी दुःखी हो जाओगे । इसलिए सर्वप्रथम शरीर - जीवन की प्रतिदिन क्षणिकता, अनित्यता का चिंतन करने को कहा है ।
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शरीर की, आयुष्य की और जीवन की क्षणिकता, अनित्यता समझाने के लिए दूसरे मुनि - कवियों ने भी कुछ काव्यों की रचनायें की हैं। वैसे एक मुनि - कवि जयसोम ने गाया है
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किहाँ लगे धुँओं धवलहरा रहेजी, जल - परपोटो जोय, आऊखु अथिरतिम मनुष्यनुं जी, गर्व म करशो कोय,
जे क्षणमां खेरु होय...
अतुल बल सुवर जिनवर जिस्याजी, चक्री हरिबल जोड़ी,
न रह्या एणे जुग कोई थिर थई जी, सुरनर भूपति कोड़ी...
अनित्यता का द्रष्टांत देते हुए कवि ने कहा है : धवलता को हरनेवाला धुँआ कब तक रहता है ? और पानी के बुलबुले भी कितना समय टिकते हैं ? जीव का आयुष्य वैसा क्षणिक है इसलिए अभिमान नहीं करें। क्षणमात्र में शरीर राख (खेरु) हो जायेगी, तुम्हारा गर्व नष्ट हो जायेगा। अतुल बलवाले इन्द्र और तीर्थंकर भी संसार में स्थिर नहीं रह पाये, चक्रवर्ती और बलदेव भी स्थिर नहीं रहे ! देवदेवेन्द्र, राजा और सम्राट क्रोड़ों की संख्या में हो गये... वे भी आयुष्य पूर्ण होने पर चले गये... तुझे भी एक दिन जाना है, इसलिए आयुष्य शरीर और जीवन के विषय में अभिमान मत कर । अनित्यता का चिंतन करते रहने से अभिमान
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शान्त सुधारस : भाग १
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