________________
आकर्षण होता है, स्त्री-उपभोग की वासना उठती है । - स्त्रीको स्त्रीवेद – मोहनीय कर्म का उदय होता है, तब पुरूष के प्रति आकर्षण
होता है, पुरूष-उपभोग की वासना जाग्रत होती है । - जिसको नपुंसक-वेद-मोहनीय कर्म का उदय होता है, उसको स्त्री और पुरूष, दोनों के उपभोग की वासना जगती है ।
मोहनीय कर्म का उदय प्रबल होता है तब कामवासना भी प्रबल होती है । उस प्रबल कामवासना को उपशान्त करने का मनोबल सभी मनुष्यों में नहीं होता है, वासना से परवश हो जानेवाले ही ज्यादा लोग होते हैं । इस कामवृत्ति का समावेश ऋषि-मुनियों ने काम-पुरूषार्थ' में किया है। काम-पुरुषार्थ :
भारतीय संस्कृति में कामवृत्ति की ओर देखने की सम्यग् दष्टि और समुचित समझदारी रही हुई है । इस संस्कृति में कामवृत्ति को गहराई से और समग्रता से समझने का और मानवोचित उर्चीकरण का घनिष्ठ प्रयास हुआ है । कामपुरूषार्थ का विज्ञान विकसित हुआ है । परंतु वर्तमान में कामवृत्ति - विषयक अज्ञानता
और विकृत समझदारी का आक्रमण समाज पर हो रहा है । ऐसे समय में हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को यथार्थ रूप में समझ लेनी चाहिए । अन्यथा आज का सेक्स एक्सप्लोझन (सेक्स-विस्फोट) सब कुछ नष्ट कर देगा। ___ कामवृत्ति एक प्रबल उर्जा है, प्राणशक्ति है । कामवृत्ति एकान्ततः तिरस्कृत नहीं है । भारतीय संस्कृति का अभिगम सामान्यतया ऐसा रहा है कि कामानंद के लिए प्राण शक्ति का व्यय मर्यादित और संयमित रखकर, उसे भावना और प्रज्ञा के विकास हेतु एवं समाधि के ब्रह्मानंद के लिए उपयोग में लिया जायें। सष्टि में व्याप्त चेतन - तत्त्व के साथ तादात्म्य साधन से ब्रह्मानन्द की अनुभूति होती है। ऐसी अनुभति जिस को होती है उसको कामानंद का आकर्षण कलासर्जन के कार्य में निमग्न वैज्ञानिक, चिंतक या कलाकार, कामानंद से उच्चतर सर्जनात्मक आनंद की अनुभूति करता है तब उसको दूसरा कोई सान-भान नहीं रहता है ! पंडित वाचस्पति मिश्र :
इस विषय में पंडित वाचस्पति मिश्र का एक द्रष्टांत सुनाता हूँ । हालाँकि यह प्रसिद्ध कहानी है, फिर भी यहाँ प्रस्तुत होने से कहता हूँ।
उन्होंने भामती नामका एक अप्रतिम ग्रंथ लिखा था । १६ वर्ष तक इस ग्रंथरचना
अनित्य भावना
१०९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org