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'बोन्ड रसेल ने कहा है : इस भौतिकवाद ने विश्व में से इश्वर को एक व्यक्ति के रूप में हकाल दिया है, इतना ही नहीं, एक आदर्श के रूप में परमात्मा - तत्त्व को भी भूला दिया है । इस परमात्म-तत्त्व के प्रति तो मनुष्य की मूलभूत निष्ठा रही हुई थी। मनुष्य के पास कोई भी आंतरिक रक्षा कवच नहीं रहा ।
भौतिकवादी विचारधारा पर आधारित नये नये शास्त्र बने और नये नये सिद्धान्त बने । ऐसी एक रूढ़ मान्यता बन गई कि मनुष्य स्वभाव से ही स्वार्थी है, कामुक है और तीव्र स्पर्धा मानव स्वभाव के मूलभूत तत्त्व हैं । इसलिए आधुनिक शास्त्रों के आधार दिये जाने लगे! कामवृत्ति का अभिगम बदलना होगा :
भारतीय समाज के उपर पश्चिम के सेक्स-विस्फोट का प्रबल आक्रमण हुआ है । उस का प्रतिरोध करना अति आवश्यक है । सेक्स के क्षेत्र में रूढ़ बनी हुई बहुत सी मान्यताओं को मूल से बदलना होगा । परिवर्तन करना अनिवार्य
___ जहाँ शोषण द्वारा, प्रलोभन द्वारा, दबाव के द्वारा, बलात्कार द्वारा एवं धन द्वारा यौन सुख भोगा जा रहा है, उसको तो यौन सुख भी नहीं कहा जा सकता, वह तो अहंतृप्ति का, पाशवी बलप्रदर्शन का एवं विकृत मानसिक तृप्ति का सुख होता है । अब तो भद्र समाज के नाम पर जात जात के वल्गर, अभद्र स्वरूप सामने आये हैं ! जैसे सेक्स टुरीझम, सेक्स-सर्विस, सेक्स-वर्कर, कोल गर्ल्स, कम्फर्ट गर्ल्स, की-क्लब वगैरह कामानन्द के प्रकार नहीं हैं क्या ? ___ आज विशेष रूप से युवा वर्ग को भिन्न भिन्न प्रकार की करामतों से, मुक्त यौन जीवन के नाम फुसलाकर गलत मार्ग पर ले जाया रहा है । ऐसी स्थिति में ढोल बजाकर समझाना पड़ेगा कि यह मुक्त यौन जीवन की बातों में मनुष्य का न तो सांस्कृतिक विकास है, न तो आत्मोन्नति है, नहीं कामानन्द की प्राप्ति है । यह तो मनुष्य का सर्वतोमुखी अधःपतन है ।
नये युवा-समाज को कहना होगा कि वासना को, सेक्स को सिर पर नहीं चढ़ाना है । घोड़े को अपने पर स्वार नहीं होने देना है । घोड़े पर खुद सवार हुए बिना यात्रा आनंदमयी नहीं बन सकती । यौन वृत्ति को उसके प्रोपर प्लेस पर उचित स्थान पर स्थापित करें।
पश्चिमी सभ्यता ने मनुष्य को स्वच्छंद पशुतुल्य बना दिया है । मनुष्य को सेक्स की कठपुतली बना दिया है । आज मनुष्य सेक्स को नहीं भोगता है,
| अनित्य भावना
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