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वास्तव में तो कामवृत्ति का प्रेम, मदता, आत्मीयता वगैरह से भरपूर मानवीय व्यवहारों में रूपान्तर करना, मनुष्य के लिए अच्छा पुरूषार्थ है । कामवृत्ति का ऊर्वीकरण करना चाहिए । ऐसा उध्वीकरण नहीं होगा तो स्थूल कामवृत्ति ही
अति बलवान् होती रहेगी, यह पर्वसामान्य अनुभव है। उन्मार्गगामी मानसशास्त्र : ___ कामवृत्ति के ऊर्वीकरण के विषय में वर्तमान मानसशास्त्रियों का ध्यान रहा ही नहीं है । उन्होंने न्याय, संयम, आत्मोन्नति जैसे उच्चतम तत्त्वों को सर्वथा भूला दिये हैं । एरिक फोम जैसे थोड़े मनोवैज्ञानिकों ने, मानवस्वभाव की उध्वंसंभावनाओं के उपर आधारित 'objective ethics' (वस्तुनिष्ठ नीतिशास्त्र) की बातें कही, तो उसको अवैज्ञानिक कहकर, उपेक्षित कर दी !
युग' जैसे मनोवैज्ञानिक ने कहा कि मानव स्वभाव में कामवृत्ति जितना ही प्रभाव Religious function का (धार्मिक वृत्ति का) रहा है, उसको भी अवैज्ञानिक कह दिया और महत्वहीन बनाया।
इसकी कड़ी आलोचना करते हुए एरिकफ्रोम कहता है - आज का मानस शास्त्र, मनुष्य के विकास के लिए गंभीर खतरा बन गया है । मानसशास्त्र का बिझनेस करनेवालों ने मौज-मजा उपभोग और सत्त्वहीनता का जो नया धर्म फैला रक्खा है, उस के वे धर्मगुरू बन गये हैं । मनुष्य का एक साधन के रूप में उपयोग करने में वे निष्णात बन गये हैं । पश्चिम का आधुनिक मानसशास्त्र भौतिकवाद का ढोल पीटनेवाला बन गया है। मनुष्य के जीवन में आत्मा, धर्म, नैतिकता वगैरह का कोई स्थान ही नहीं रहना चाहिए - ऐसी भौतिकवादी मान्यता के उपर ऐसे उन्मार्गगामी मानसशास्त्र ने शास्त्रीय मुहर लगा दी है। भौतिकवादी सभ्यता के नुकशान :
पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता ने, विज्ञान के नाम आत्मा, धर्म, नैतिकता वगैरह पवित्र तत्त्वों को मूलतः उखाड़कर फेंक दिये । मानवजात से अनेक प्रकाशदीप छीन लिये। मनुष्य ने पारलौकिक सत्ता और दिव्यता.की संभावनाओं के खयाल गँवा दिये । पहले तो जीव को इश्वर का - परमात्मा का एक अंश मानते थे, और जीवन में उच्चतम साधना कर परमात्मा स्वरूप प्राप्त करने का लक्ष्य था, परंतु अब मनुष्य संपूर्णतया अपने पार्थिव अस्तित्व के साथ जुड़ गया है । इस पृथ्वी पर सब सुख-सुविधायें और आनंद-प्रमोद प्राप्त करने का ही मुख्य ध्येय बन गया।
शान्त सुधारस : भाग १
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