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में घर-घर उसको भिखारी के रुप में फिराया और बाद में हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा दिया । मुंज का कहाँ रहा राज्य ? कहाँ गया शरीर-बल ? कहाँ रहा सुख-वैभव ? सब कुछ नष्ट हो गया ।
दूसरा द्रष्टांत दिया है श्री रामचंद्रजी का । मुहूर्त निकला था राज्याभिषेक का और चले गये वनवास में । राज्य, वैभव और संपत्ति त्याग कर, जंगलों में फिरते रहे। __ धनसंपत्ति, राज्य संपत्ति और सुखसंपत्ति की अनित्यता, अस्थिरता और विनश्वरता बताकर, उस संपत्ति के उपर मोह नहीं रखने का उपदेश दिया है । मोहमूढ़ नहीं बनने की प्रेरणा दी है। इन्द्रियों के वैषयिक सुख : ___ इन्द्रियों के प्रिय वैषयिक सुखों की अनित्यता बताते हुए उपाध्यायजी ने कहा
'सर्वेऽपीन्द्रियगोचराश्च चटुलाः सन्ध्याभरागादिवत् ।' संध्या के क्षणिक रंगों जैसे पाँच इन्द्रियों के विषय सुख हैं । - वैषयिक सुखों से इन्द्रियाँ कभी तृप्त नहीं होती, - विषयों की प्रियाप्रिय की कल्पनायें बदलती रहती हैं, - प्रिय विषय की प्राप्ति पुण्यकर्म के अधीन होती है, - प्रिय विषय पुण्यकर्म देता है, पापकर्म छीन लेता है ! - प्रिय विषय अप्रिय बन जाता है, अप्रिय विषय प्रिय बन जाता है । __ कभी ऐसा भी होता है कि प्रिय विषय प्राप्त होते हैं, परंतु इन्द्रियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती है ! इन्द्रियाँ विषयभोग नहीं कर सकती हैं । - मधुर शब्द सुनने के साधन हैं (रेडिओ, टी.वी. वगैरह) परंतु कान बहरे हो
गये हो ! बहरापन आ गया हो । - सुंदर द्रश्य, सुंदर रूप... सौन्दर्य के साधन उपलब्ध है, परंतु आँखों में अंधापन ___आ गया हो । अथवा आँखें रोगग्रस्त हो गई हों। - मनोहर बाग हो, बगीचा हो, इत्र हो, सेंट हो...सुगंधी अनेक पदार्थ हो, परंतु
नाक ही बिगड़ गया हो ! नाक को सुगंध-दुर्गंध का अनुभव ही न हो ! - खाने के स्वादिष्ट भोजन हो, पेय – पदार्थ हो, परंतु जीभ ही स्वादहीन हो
गई हो अथवा जीभ को लकवा-रोग लग गया हो ! । अनित्य भावना
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