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मठ में सोया हुआ देख कर कहा है :
अवधू ! क्या सोता इस मठ में ? इस मठ का है कवण भरोसा ? पड़ जाये चटपट में... अवधू.
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पानी किनारे मठ का वासा कवण विश्वास ए तट में ? अवधू.
छिन में ताता, छिन में शीतल रोग शोक बहुं
मठमें... अवधू. घंटी फेरी आटो खायो
खरची न बांधी ते वट में... अवधू.
सोता सोता काल गमायो
अब हु न जाग्यो तू घट में... अवधू.
इतनी सुन निधि संयम मिलकर ! ज्ञानानन्द आये घट में... 3 ..अवधू.
सोयी हुई... प्रमाद में सोयी हुई आत्मा को जगाने के लिए, कितनी अच्छी प्रेरणा दी है ज्ञानानन्दजी ने ? शरीर रूप मठ के उपर विश्वास रख कर, निश्चित बन कर आत्मा सोयी है, यह देखकर कवि आत्मा को संबोधित कर कहते हैं :
इस काया के मठ में क्या निश्चित होकर
सोया है आत्मन् !
इस काया के मठ का भरोसा नहीं है,
यह कभी भी गिर सकता है,
क्योंकि
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मृत्यु - नदी के ( पानी के ) किनारे पर बसा है यह मठ !
किनारा कभी भी ढह सकता है... और यह काया का मठ कभी गरम होता है, कभी शीतल... कभी भी धराशायी हो सकता है ... (इस लिए जाग... नींद का त्याग कर )
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शान्त सुधारस : भाग १
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