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पदार्थों की अनित्यता बताते हुए शामल भट्ट ने कहा है -
जे जायुं ते जाय, जेह फूल्युं ते खरशे, भर्यु तेह ठलवाय, चड्युं ते तो उतरशे, लीलुं ते सुकाय, नवं ते जूनुं थाशे,
आवरदावश सर्व, काल सहु को ने खाशे. जो जनमता है उसका नाश होता है, जो खिलता है वह झड जाता है, जो भरा हुआ होता है वह खाली हो जाता है, जो चढ़ता है वह उतरता है, जो हरा होता है वह सुखता है और जो नया होता है वह जीर्ण होता है... सब कुछ अपनी मर्यादा में है । काल-महाकाल सर्वभक्षी होता है । पदार्थों के परिवर्तन की कितनी अच्छी बात कही है कवि ने ? परिवर्तनशील पदार्थों के साथ प्रेम नहीं : - पहले शरीर की परिवर्तनशीलता का विचार करें । १. शिशु-अवस्था, २. बाल्य-अवस्था, ३. तरूण अवस्था, ४. युवावस्था ५. प्रौढावस्था ६. वृद्धावस्था. ___ अवस्थाओं के अनुरुप मन के भावों का और शरीर की क्रिया-कर्मों का भी परिवर्तन देखने में आता है न ? - कभी शरीर निरोगी होता है, कभी शरीर रोगग्रस्त होता है, - कभी शरीर सुंदर होता है, वही शरीर अकस्मात में कुरूप भी हो जाता है । - कभी शरीर ठंड़ा होता है, कभी गर्म होता है !
ऐसे शरीर पर भरोसा रख कर, क्यों उसके उपर प्रेम करना ? एक कविने कहा है -
___क्या तन मांजता रे,
एक दिन मिट्टी में मिल जाना.... ज्ञानानन्द ने शरीर को मठ' की उपमा देकर, और आत्मा (अवधू) को उस
| अनित्य भावना
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