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पिता और पुत्र के संबंध की निःसारता, अनित्यता बताते हुए कवि ने राजा श्रेणिक और राजकुमार कोणिक का द्रष्टांत दिया है । पुत्रने पिता को कारावास में डाला था और रोजाना चाबुक से मारता था ।
पति और पत्नी के संबंध की दारुणता बताते हुए कवि ने राजा प्रदेशी और रानी सूर्यकान्ता का द्रष्टांत बताया है। रानी ने राजा को जहर देकर मार डाला
था ।
पिता-पुत्र के संबंध की निःसारता बताते हुए राहु-केतु की कहानी बतायी है । अपने पुत्र के ही अंगों का छेदन करनेवाले पिता को पिता कैसे कहें ? सम और परशुराम परस्पर शत्रु बने, दोनों नरक में गये ।
चाणक्य और पर्वत मित्र बने । पर्वत की मृत्यु होने पर चाणक्य खुश हुआ था ! मित्र का संबंध कैसा असार ?
कवि कहता है - कोई किसी का सगा नहीं है, सभी को अपना स्वार्थ है ! कौन सज्जन और कौन दुर्जन ? स्वार्थ ही सज्जन को दुर्जन बनाता है और स्वार्थवश दुर्जन सज्जन होने का दंभ करता है !
उपसंहार :
इस प्रकार आज छह प्रकार की अनित्यता की बात की
१. शरीर की अनित्यता,
२. आयुष्य की अनित्यता,
३. जीवन की अनित्यता
४. संपत्ति धन दौलत की अनित्यता,
वैषयिक सुखों की अनित्यता, और
५.
६. संबंधों की अनित्यता.
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इन छह बातों के प्रति भीतर से विरक्त बनकर जीना है। यदि विरक्त बनकर जीना सीख लिया तो आनन्द ही आनन्द पाओगे । क्लेश, संताप और उद्वेग मुक्ति मिल जायेगी ।
आज बस, इतना ही
अनित्य भावना
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