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व्यापार करते हैं । शराब का धंधा, मांस नियति का धंधा, जुआघर (केसिनो) चलाने के धंधे...हिंसक साधनों का उत्पादन करने के धंधे... ऐसे अनेक घृणित धंधे करते हैं । कहिए, ऐसे बिजनेस करनेवालों को चित्त की शान्ति होती है क्या ? मन की प्रसन्नता होती है क्या ? ___ - कुछ लोग धन-संपत्ति पाने के लिए मंत्रजाप करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, तप-त्याग करते हैं... | यह सब करते हुए वे लोग मोह-विषाद से व्याकुल होते हैं । मैंने ऐसे लोगों के मुँह से विषादभरे शब्द सुने हैं – 'इतने वर्षों से भगवान की पूजा करता हूँ...परंतु सौ रुपये का भी बैंक-बेलेन्स नहीं बना पाया हूँ... इतने वर्षों से आयंबिल की ओली करता रहा हूँ...फिर भी बंबई में अभी १०x१० का कमरा भी ले नहीं पाया है। अभी तक नौ लाख नवकार मंत्र का जप कर लिया है, परंतु घर में न फोन आया है, न फ्रीज आया है, न टी.वी. आया है...फियाट की तो बात ही कहाँ ? ऐसे लोग जीवनपर्यंत मोह-विषाद के जहर से व्याप्त रहते हैं। कभी भाग्योदय हो...और सत्पुरुष का समागम हो जायं... और ऐसा शान्तसुधारस जैसा ग्रंथ सुनने को मिल जायं... तो संभव है कि मोह का जहर उतर जायं ! पुत्र-प्राप्ति की वासना :
एक धनवान पुरुष इसलिए अशान्त और उद्विग्न रहता था, चूंकि उसको पुत्र नहीं था। लड़कियाँ थी, परंतु लड़का नहीं था ! भौतिक सुख के सभी साधन होते हुए भी वह अपने आपको दुःखी मानता था । लडका पाने के लिए उसने कितने सारे उपाय किये थे ? जितने कंकर उतने शंकर किये थे । कितने बाबाफकीरों के आसपास भटकता था ? कितना मंत्र-जाप करता था ? वासनापूर्ति करने की तीव्रता ने उसको पागल सा बना दिया था। ___ मैंने उसको पछा था: तु क्यों लडका पाने के लिए इतना व्यग्र और अशान्त है ? तेरे गाँव में...तेरे घर के पास में ही तने दुर्घटना नहीं देखी है ? उस महानुभाव को एक ही लड़का था न ? लाड़-प्यार में बड़ा हुआ था न ? गर्भ श्रीमंत था न ? ज्यों ज्यों लड़का बड़ा होता गया...त्यों त्यों अविनीत और उदंड बनता गया । माता-पिता का अपमान करने लगा। पढ़ाई पूर्ण नहीं की...व्यसनों का शिकार हुआ...पैसों की चोरी करने लगा...पिता की मृत्यु हो गई...माता के जेवर बेच दिये... शादी की...घर से भाग गया...पिता का घर बेच दिया...रास्ते पर भटकता हो गया... | लड़के से माता-पिता ने कौन-सा सुख पाया ? हाँ, लड़कियों । प्रस्तावना ACHARYA STARTERTAIEVINTAMANDIR २ ५ ।
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