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होगा ? जरा शान्ति से सोचना । स्वस्थ दिमाग से सोचना । यदि समता पाना है तो यह चार प्रकार का मोह तोड़ना ही पड़ेगा ।
चारों बातों का ममत्व टूटना चाहिए :
यदि इन चार बातों का ममत्व नहीं टूटता है तो मौन नहीं रह सकता है 1 समता नहीं आ सकती है। चार में से एक बात का भी मोह रहता है, तो भी समता नहीं टिकती है । मैंने ऐसे कई प्रकार के लोग देखे हैं । कुछ उदाहरण देकर बताता हूँ । नाम सही नहीं बताऊँगा ।
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एक मुनि थे। मुनि थे इसलिए स्वजन - परिजन और वैभव - संपत्ति के तो त्यागी थे ही! परंतु शरीर तो था ही! मुनि का नाम तत्त्वविजयजी समझना । उनको शरीर पर मोह था, ममत्व था । जब शरीर अस्वस्थ होता... वे विचलित हो जाते। एक दिन उनके शिष्य ने उनकी सेवा में उपेक्षा कर दी, तो तत्त्वविजयजी का क्रोध आसमान छूने लगा और शिष्य के सर पर डंडा मार दिया। वे समता नहीं रख पाये ।
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एक महानुभाव को स्वजन - परिजन और शरीर से लगाव बहुत कम था, परंतु धन-संपत्ति से तीव्र लगाव था । धन-संपत्ति के विषय में तीव्र राग-द्वेष करते । हिंसा करवाते और असत्य भी बोलते । उनके मन में सदैव अशान्ति बनी रहती ।
- मैं एक सज्जन को पहचानता हूँ । उनको धन-संपत्ति से लगाव नहीं है, शरीर से भी लगाव नहीं है... परंतु स्वजनों से अति लगाव है । स्वजनों में भी पत्नी से ज्यादा लगाव है । इसलिए वे हमेशा अशान्त - परेशान रहते हैं ! चूँकि उतना लगाव पत्नी को पति के प्रति नहीं है ।
- एक मुनि हैं। उनको इन चारों बातों से लगाव नहीं है; परंतु नाम से, कीर्ति से... यश से भारी लगाव है ! जरा भी किसी ने जाने-अनजाने में अपमान कर दिया अथवा निंदा कर दी... तो वे अशान्त हो जाते हैं । क्रोधी हो जाते हैं । उनका समताभाव चला जाता है । उन्होंने ज्ञान और तपश्चर्या को यश-कीर्ति का साधन बना दिया है ! वे अपने ज्ञान और तप से समता नहीं पा रहे हैं । कषायों को बढ़ाते हैं !
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निमित्त और उपादान का तत्त्वज्ञान :
सभा में से: माधोजी के जीवन परिवर्तन में, हृदय - परिवर्तन में मुख्य निमित्त
शान्त सुधारस : भाग १
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