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समस्या को देखना सीखें
कभी से अलग-अलग चूल्हे जल जाते । सन्तुलन के लिए सापेक्ष के साथ निरपेक्ष भाव हो—यही दर्शन की देन है ।
व्यवस्था : अव्यवस्था
व्यवस्था समाज के लिए आवश्यक है, वैसे अव्यवस्था भी । गति और प्रगति के लिए अव्यवस्था आवश्यक है । स्कन्ध भी संघात और भेद से बनता है, केवल संघात ही हो तो सारा विश्व पिण्ड बन जाए। हाथ की पांचों अंगुलियों का पिण्ड एक हो जाय तो उनकी कोई उपयोगिता नहीं रह सकती । भिन्नता में ही उनकी उपयोगिता है | कोरे भेद से भी काम नहीं चलता | अणु-अणु बिखर जाए तो जीवन दूभर बन जाए ! संघात और भेद से स्कन्ध बनता है, वही हमारे लिए उपयोगी होता है । अव्यवस्था का अर्थ है-अवस्था । कोरी व्यवस्था से समाज जड़ बन जाता है, क्योंकि व्यवस्था कृत है, नैसर्गिक नहीं । नैसर्गिकता स्वयं अवस्था बन जाए तब व्यवस्था की आवश्यकता ही न रहे । शासन मुक्त समाज की अपेक्षाएं
शासन-प्रणाली भी आयी है। समाज ने उसे आवश्यक माना और वह आ गई। एक समय मनुष्य ने शासन की कल्पना की, राज्य बन गया, शासक बन गए । मार्क्स की अन्तिम कल्पना है-शासन-मुक्त राज्य हो । यह कल्पना मार्क्स की नयी नहीं है । जैन आगमों में 'अहं इन्द्र' का उल्लेख है। वहां सब इन्द्र हैं, कोई सेवक या पदाति नहीं। प्रेष्य और प्रेषक भाव भी नहीं है । वह शासनमुक्त समाज का चित्र है। किन्तु वे 'अहं इन्द्र' इसलिए हैं कि उनके क्रोध, मान, माया और लोभ क्षीण हैं, स्वभाव से वे सन्तुष्ट हैं। शासनमुक्त राज्य के लिए ये अनिवार्य अपेक्षाएं हैं । चाह स्वतंत्रता की
स्वाधीनता दर्शन की बहुत बड़ी देन है । सब लोग विचारों की स्वतन्त्रता चाहते हैं, लेखन और वाणी की स्वतन्त्रता चाहते हैं । स्वतन्त्रता का घोष प्रबल है । कोई पराधीनता नहीं चाहता | राजा शब्द इतिहास और शब्दकोश का विषय बन गया है, वैसे ही नौकर शब्द भी अतीत की वस्तु बनता जा रहा है । इसका अर्थ है कि निरपेक्षता आ रही है । सापेक्ष की कड़ी टूटने पर कोई बड़ी हानि नहीं, व्यवस्था न रहे तो कोई दोष नहीं; शासन न रहे तो कोई आपत्ति नहीं; यदि स्व-शासन आ जाए । स्व-शासक न शासन से शासित होता है और न शासन से मुक्त । 'कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के'---कुशल वह है जो न बद्ध होता है और न मुक्त । एक ही व्यक्ति जो न बंधा हुआ हो और न मुक्त हो, यह कैसे हो सकता है ? शासन छोड़ा नहीं जा सकता । शासन नहीं, वहां ऋण नहीं । कोई भी अत्राण रहना नहीं चाहता—इसलिए आत्मानुशासन आता है । कुशल इसलिए है कि वह परशासन से बद्ध नहीं है और आत्मानुशासन से मुक्त नहीं है ।
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