Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 203
________________ कार्यकर्ता की पहचान १८९ संवेदनशीलता । यह एक ऐसा धागा है जो समाज को समाज बनाए रखता है, इकाई में बांधे रखता है। दूसरे की कठिनाई को अपना मानना, समस्या और उलझन को अपना मानना । यह कठिनाई पड़ोसी की नहीं, मेरी है, यह समस्या मेरे साधर्मिक की नहीं, मेरी है और मुझे इसका समाधान करना है । यह संवेदनशीलता जाग जाए, समाज के साथ तादात्य बन जाए, पृथकत्व या अलगाव न रहे । ___ यदि व्यक्ति यह सोचे-समाज से मुझे क्या लेना देना है ? समाज का काम समाज समाज जाने तो वास्तव में समाज बनता ही नहीं है। समाज के साथ तादात्य की अनुभूति से संवेदनशीलता प्रखर बनती है । बहुत लोग प्रार्थना करते है, वन्दना करते हैं, किन्तु इष्ट के साथ तादात्य कितने लोग स्थापित कर पाते हैं । कुछ लोग ही ऐसे होते हैं, जो इष्ट के साथ तदात्म हो पाते हैं । __. एक पादरी महाप्रभु ईसा का अनन्य भक्त था । कहा जाता है— महाप्रभु ईसा के सूली का दिन आता, वह इतना लीन और तदात्म हो जाता कि उसके हाथ से भी खून बहने लग जाता । ऐसा लगता- जैसे कोई सूई चुभ रही है और खून बह रहा है। समाज के साथ इतना तादास्य स्थापित कर लेना, दूसरे की कठिनाई को अपना मान लेना, यह है संवेदनशीलता । हमारे मस्तिष्क में दो कोष्ठ हैं- एक कोष्ठ क्रूरता का है और दूसरा कोष्ठ है करुणा का, संवेदनशीलता का । पता नहीं, क्या बात है, प्रकृति का क्या रहस्य है, क्रूरता का कोष्ठ बहुत जगा हुआ है और करुणा तथा संवेदनशीलता का कोष्ठक जगता है । तब व्यक्ति दूसरों की समस्या को समझ लेता है । स्थिति बदल जाती है। संवेदनशीलता गांधी की महात्मा गाांधी आसाधारण व्यक्ति थे किन्तु उनका बाह्य परिवेश बहुत साधारण था । धोती भी पूरी नहीं पहनते थे, केवल घुटनों तक पहनते थे। उनके मन में यह बात जग गई-हिन्दुस्तान की आधी आबादी ऐसी है, जिसे पहनने को पूरा कपड़ा नहीं मिलता। मुझे इतना कपड़ा क्यों पहनना चाहिए । कहा जाता है— गांधी जी एक बार दक्षिण भारत में गए । एक छोटे बच्चे ने गाांधी जी से कहा- बापू ! आपके पास कपड़े ही नहीं हैं। आप मुझे आज्ञा दें, मैं अपनी मां से आपके लिए चोला, धोती- पूरा वेश बनवा दूं । ___गांधी जी बोले- बच्चे ! तुम्हारी भावना अच्छी है, पर मैं तुम्हारा वेश नहीं ले सकता । क्यों ?' - बच्चे ने सविनय जिज्ञासा की । 'क्योंकि तुम्हारी मां मेरे लिए वेश तैयार नहीं कर सकती।' 'बापू ! आप आज्ञा दें, आपके लिए मेरी मां जरूर तैयार कर देगी ।' 'वह नहीं कर सकती ।' 'क्यों नहीं कर सकती ?' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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