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कला और कलाकार
कला का अर्थ
कला और संयम में भी सामंजस्य है । कला का अर्थ है सामंजस्यपूर्ण प्रवृत्ति । मुझे स्याद्वाद की दृष्टि प्राप्त हुई है। मैं सापेक्षदृष्टि से देखता हूं कि कला का विकास सामंजस्य से हुआ है। सत्य कला से विराट् हैं। सत्य के साथ कला का योग होने से जीवन विकासशील बन जाता है । अगरबत्ती को अग्नि मिलने से सुगन्ध फूट पड़ती है । सत्य और सौन्दर्य का योग होने से जीवन का विकास हो जाता है । जीवन विकास और कल्याण में अन्तर नहीं है । कल्याण यानी शिव । हमारा शिव सत्य और सौन्दर्य के बीच होना चाहिए । जीवन की पृष्ठभूमि में शिव और आँखों के सामने सौन्दर्य हो तभी सत्यं शिवं, सुंदरं की समन्विति हो सकती है ।
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