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संकुलता
संकुलता से मुक्त कौन है ? और संकुलता कहां नहीं है ? बाजार में चले जाइये । दूकानों की लम्बी पंक्ति है । एक वस्तु की अनेक दूकानें हैं । कहां से क्या लिया जाए, इसका निर्णय ठाक्ति को ही करना होगा।
राजनीति के क्षेत्र का स्पर्श करिए | अनेक दल हैं | सबके पास खुशहाली के घोषणा-पत्र हैं। किसकी सदस्यता स्वीकार की जाए, इसका निर्णय व्यक्ति को ही करना होगा।
चिकित्सा का क्षेत्र भी ऐसा ही है । अनेक प्रणालियां हैं। उनके अधिकारियों के पास रोग-मुक्ति का आश्वासन है । किसकी शरण लें, इसका निय व्यक्ति को ही करना होगा।
ये सब अनेक हैं इसलिए बुद्धि को कष्ट देना पड़ता है । यदि सब एक हो जाएं तो निर्णय करने का प्रयास क्यों करना पड़ता है ?
एक बार भोज ने ऐसा ही सोचा और छहों दर्शनों के प्रमुखों को कारागार में डालकर जेलर को आदेश किया कि उन्हें तब तक भोजन न दिया जाए जब तक वे सब एकमत न हो जाएं।
. यह बात सूराचार्य के कानों तक पहुंची । वे भोज की सभा में गए और गुजरात लौट जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की और साथ ही पूछा- राजन् ! वहां जाने पर मेरे आचार्य धारानगरी के बारे में पूछेगे । मैं उन्हें प्रामाणिक जानकारी दे सकूँगा यदि आप मुझे सही-सही जानकारी दें।
. राजा भोज ने गर्वोन्नत भाव से कहा-मुनिवर ! मेरी नगरी में चौरासी राजप्रसाद हैं, चौरासी बड़े बाजार हैं । प्रत्येक बाजार में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की चौबीस बड़ी दुकानें हैं।
सूराचार्य बीच में ही बोल उठे—अलग-अलग दूकानें क्यों ? अच्छा हो, सबको मिलाकर एक कर दिया जाए।
भोज ने कहा-भला यह कैसे हो सकता है ? आप कल्पना कीजिए, दुकान एक हो तो कितनी भीड़ हो जाए। लोगों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को कौन कैसे पूरा करे ? आप मुनि हैं, व्यापार की कठिनाइयों को क्या जाने ?
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