Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 201
________________ कार्यकर्त्ता की पहचान में पांच-दस कमरे होते हैं, उसे बड़ा मकान माना जाता है। जिस मकान में चालीस से अधिक कमरे होते हैं प्राचीन भाषा में सप्त भौम मकान है, उसे विशाल प्रासाद माना जाता है किन्तु हमारे मस्तिष्क में जितने प्रकोष्ठ हैं, उतने किसी मकान में नहीं हैं। बहुत बड़े कॉलेज, सचिवालय और विश्वविद्यालय में भी उतने कमरे नहीं हैं, जितने प्रकोष्ठ मस्तिष्क में हैं । सोए कोष्ठ जगाएं लुधियाना में सी० एम० सी० हॉस्पिटल को देखा। उसमें चार हजार कमरे हैं किन्तु मस्तिष्क के प्रकोष्ठों की तुलना में वह बहुत छोटा पड़ जाता है। हमारे मस्तिष्क में चार हजार नहीं, चार लाख और चार करोड़ नहीं, चार अरब से ज्यादा कमरे बने हुए हैं । प्रत्येक प्रकोष्ठ प्रत्येक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेवाद हैं। एक प्रकोष्ठ एक काम करता है और दूसरा कोष्ठ दूसरा काम करता है। ऐसा लगता है— मस्तिष्क में जो स्वार्थ का कोष्ठ बन गया है, खुला हुआ है, चौबीस घंटे खुला रहता है किन्तु परार्थ का कोष्ठ, उससे भी आगे परमार्थ का कोष्ठ है, वह बन्द पड़ा हुआ है। प्रशिक्षण का अर्थ है— मस्तिष्क के उन कोष्ठों और दरवाजों को खोल देना, जो बन्द पड़े हैं। प्रशिक्षण से सोए कोष्ठों को जगाया जा सकता है । १८७ प्रशिक्षण की विधि प्रशिक्षण की विधि नई नहीं है। प्राचीन युग में इतना सुन्दर प्रशिक्षण होता था, जिसकी सामान्यतः कल्पना नहीं की जा सकती । एक शक्ति है लघिमा । उसका प्रशिक्षण चलता था । जो व्यक्ति इसका प्रशिक्षण ले लेता, वह बहुत विचित्र करतब दिखाने में सक्षम बन जाता । कोशा वेश्या की घटना प्रसिद्ध हैं । स्थूलभद्र बारह वर्ष कोशा के राग रंगों डूबे रहे और एक दिन मुनि बन गए। सेनापति सुकेतु ने कोशा के सामने अपनी प्रतिभा का बखान किया । कोशा बोली- तुम मेरा चमत्कार देखो । सरसों का ढेर और उस पर सूई रख दी रख कोशा आंगन पर नृत्य करते करते सरसों के ढेर पर नृत्य करने लगी । सरसों का एक भी दाना इधर-उधर नहीं हुआ । सूई जहां की तहां पड़ी रही । क्या यह संभव है ? मनुष्य सरसों के ढेर पर जाए तो वह ऐसे ही बिखर जाएगा । तब व्यक्ति सरसों के ढेर पर नाचता रहे, न दाना इधर हो सकता है, न सूई प्रकंपित हो सकती है । व्यक्ति कितना प्रशिक्षण लेता है, तब यह स्थिति बनती है । सामान्य आदमी इस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकता, इसे सच भी नहीं मान सकता । अनेक लोक इस भाषा में सोच सकते हैं - यह कोरी गप्प है । ऐसा कभी हो नहीं सकता । संभव है प्रशिक्षण से यह कोशा की घटना हजारों वर्ष पहले की है, किंतु जो लघिमा का प्रशिक्षण लेता है, वह आज भी ऐसे चमत्कार का प्रदर्शन कर सकता है। महाराजा गंगासिंह जी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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