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कार्यकर्ता की पहचान
इस दुनिया में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो कार्य न करता हो । प्रत्येक व्यक्तिको कार्य करना होता है । जीवन चलाने के लिए कार्य करना जरूरी है । हम किसी व्यक्ति के संदर्भ में यह नहीं मान सकते कि वह कार्यकर्ता नहीं है । अपनेपन की सीमा से परे
आज कार्यकर्ता शब्द एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त है। शब्द के अर्थ दो प्रकार के होते हैं— प्रवृत्तिलभ्य अर्थ और व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ । व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ की दृष्टि से देखें तो सब कार्यकर्ता हैं । प्रवृत्तिलभ्य अर्थ की दृष्टि से देखें तो जो दूसरों के लिए करता है, वह कार्यकर्ता है। अपने लिए सब करते हैं, किन्तु सब कार्यकर्ता नहीं कहलाते । जो अपना स्वार्थ छोड़कर दूसरों के लिए खपता है, अपना पसीना बहाता है, वह कार्यकर्ता कहलाता है।
बहुत कठिन है अपने स्वार्थ की सीमा को अतिक्रांत करना । व्यक्ति अपने स्वार्थ की सीमा में रहता है । वह अपने लिए करता है, अपने घर और अपने परिवार के लिए करता है । जहां अपनापन जुड़ा हुआ है, वहां काम करता है । जब व्यक्ति अपनेपन की सीमा से परे ‘पर' के लिए कार्य करता है, तब कार्यकर्ता शब्द जन्म लेता है । स्वार्थ का अतिक्रमण
कार्यकर्ता की दूसरी पहचान है-स्वार्थ से ऊपर उठना । कार्यकर्ता वह होता है, जो स्वार्थ से ऊपर उठना जानता है । स्वार्थ-त्याग बहुत कठिन साधना है। अनेक लोग बड़े-बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं, सत्ता, उद्योग, शासन और प्रशासन के उच्च शिखर को छू लेते हैं, किन्तु वे 'स्व' की सीमा को नहीं तोड़ पाते । बड़ा होना, बड़े पद पर चले जाना एक बात है और स्वार्थ की सीमा को अतिक्रांत करना बिलकुल दूसरी बात है। प्रशिक्षण के बिना, परमार्थ की चेतना को जगाए बिना स्वार्थ की सीमा का बोध जागृत नहीं हो सकता।
मानव मस्तिष्क में असीम क्षमताएं हैं और उन क्षमताओं के प्रकोष्ठ मस्तिष्क में बने हुए हैं । इस छोटे से मस्तिष्क में इतने प्रकोष्ठ हैं, जिनकी सामान्य आदमी कल्पना नहीं कर सकता । लाखों-करोड़ों प्रकोष्ठ मानव के मस्तिष्क में विद्यमान हैं । जिस मकान
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