________________
१८४
समस्या को देखना सीखें
संग्रह का द्वार जब तक खुला रहेगा तब तक—'ब्लैक मत करो', 'रिश्वत मत लो', इसका पालन कैसे होगा? इस चिन्तन के बाद अणुव्रत के अन्तर्गत 'नया मोड़' चलाया गया । नये मोड़ से लोगों का दृष्टिकोण बदला है । खर्च की कमी हुई है । साधन-शुद्धि पर भी विश्वास जमा है। कुछ लोगों ने दहेज लेना बन्द कर दिया है, उसका प्रदर्शन भी बन्द कर दिया है । विवाह भी एक दिन में होने लग गया है। जब तक सामाजिक मानदंड में परिवर्तन नहीं किया जाएगा, नैतिकता को विकसित होने में कठिनाई होगी। इसलिए नैतिकता को प्रतिफलित करने के लिए वैसी परिस्थिति का निर्माण करना भी आवश्यक है।
प्रश्न सामाजिक चर्चा का
एक प्रश्न आता हैं- संत सामाजिक चर्चा में भाग क्यों लेते हैं ?
धर्म और अधर्म की चर्चा का क्षेत्र समाज ही है। समाज को छोड़कर इसकी चर्चा आकाश में नहीं की जाती । धर्म की चर्चा भी समाज में होती है और अधर्म की चर्चा भी समाज में होती है। पुराने आचार्यों ने तात्कालिक सामाजिक बीमारियों पर गहरा प्रहार किया था । भगवान् महावीर ने केवल छुआछूत पर ही प्रहार नहीं किया अपितु हरिजनों को दीक्षित कर उन्हें बराबर स्थान दिया । एक नहीं ऐसे अनेक स्थल हैं, जहां प्राचीन आचार्यों ने समय-समय पर सामाजिक बीमारियों की चिकित्सा की है।
परिस्थिति : परिणाम
कल्पातीत देवलोक में न कोई स्वामी है और न कोई सेवक है। न कोई शासक है और न कोई शासित है । सब अहमिंद्र हैं । न कोई बड़ा है, न कोई छोटा है । ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे भी परिस्थिति का योग है। वे उपशांत हैं, अल्पक्रोध, अल्पमान, अल्पमाया और अल्पकषाय हैं ।
तमिलनाडु में हमने देखा कहीं लू नहीं है जबकि उत्तरप्रदेश में लू से कई आदमी मर जाते हैं।
क्षेत्र, काल और परिस्थिति के प्रभाव से कोई भी नहीं बच सकता । हमारा शरीर भी इसका अपवाद नहीं रह सकता । ऐसे व्यक्ति विरल ही हैं, जो अग्नि में बैठकर भी न जलें।
अणुव्रत ने भी परिस्थितियों की शक्ति पर विचार किया है और उनको परिवर्तित करने के साधनों पर भी सोचा है । सामाजिक जीवन में व्रतों की अनिवार्यता है । अनुशासन के बिना समाज चल नहीं सकता । सड़क पर दस व्यक्ति चल सकते हैं पर बैठ नहीं सकते, क्योंकि उन्हें मर्यादा का बोध है । मर्यादा और अनुशासन का विकास व्रत के रूप में हुआ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org