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साधना का अर्थ
साधना का अर्थ है-स्वभाव-परिवर्तन की प्रक्रिया । साधना से पूर्व जो स्वभाव है उसमें यदि परिवर्तन न आए तो समझिए साधना का कोई फल नहीं हुआ। साधना से पूर्व साधक का दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि साधना से स्वभाव बदला जा सकता है । स्वभाव कहने व सुनने की अपेक्षा अभ्यास से अधिक बदलता है। सबसे पहले क्रोध-नियन्त्रण का अभ्यास आवश्यक है, क्योंकि सामूहिक जीवन में उसका अधिक प्रसंग आता है । प्रक्रिया
कुछ प्रश्न प्रस्तुत किए जाते हैं । साधक उन प्रश्नों का उत्तर 'हां' या 'ना' में अपनेआप से ले ।
१. क्रोध आता है या नहीं ? २. तीव्र आता या मन्द ? ३. अपने भीतर एक ही सीमित रहता है या गाली के रूप में तथा हाथ-पैर चलाने
के रूप में बाहर आ जाता है ? . ४. प्रतिदिन आता है या कभी-कभी, पाँच-दस दिन में ? ५. एक दिन में एक बार या अनेक बार ? ६. तत्काल शान्त हो जाता है या गाँठ बनकर लम्बे समय टिकता है ? ७. मैंने कभी सोचा या नहीं कि क्रोध का परिणाम अन्ततः बुरा ही होता है ? ८. क्षमा या मानसिक संतुलन व्यक्ति के लिए संभव है या नहीं ? ९. यदि संभव है तो उसके लिए प्रयत्न और अभ्यास किया या नहीं ? १० प्रयत्न करने पर लक्ष्य तक पहुंच पाया हूं या नहीं ? कहां तक पहुंचा हूं ?
पहुंच की कुछ क्रमिक रेखाएं ये हैं : (क) प्रतिकूल कहे तो क्रोध नहीं आता । (ख) दूर का आदमी कहे तो क्रोध नहीं आता । (ग) घर का या निकट का आदमी कहे तो क्रोध नहीं आता । (घ) अमुक-अमुक स्थिति में क्रोध नहीं आता ।
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