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समस्या को देखना सीखें
व्यक्ति का धर्म
कई बार यह अनुभव ही नहीं किया जाता कि गाली का प्रत्युत्तर बिना गाली के दिया जा सकता है | "क्या मैं कमजोर हूं, जो गाली को सहन करूं यह धारणा है तब तक क्रोध को बुरा नहीं माना जाता | बुरे के प्रति बुरा नहीं होना चहिए । सौदा भी नहीं करना है कि अमुक अच्छा व्यवहार करे तो उसके साथ अच्छा व्यवहार करूं । उसे सोचना चाहिए, मैं अच्छा व्यवहार करूं, यह मेरा धर्म है । प्रेम से जितना अच्छा होता है उतना क्रोध से नहीं होता । क्रोध का प्रत्युत्तर क्रोध से नहीं, प्रेम-व्यवहार से होना चाहिए ।
क्रोध का स्वभाव मिटाने के लिए सब जीवों के प्रति प्रेम का व्यवहार करें। मित्रता का विकास करें। सबको मित्र मानने से भय नहीं रहता । क्योंकि भय शत्रु से होता है, शत्रु रहेगा ही नहीं तब भय किसका ? अधिकांश भय अपने मानसिक विकल्पों से पैदा होते हैं । मन में किसी के प्रति ग्लानि व शत्रुता का भाव न रहे तब प्रसन्नता झलकती है, मन हल्का रहता है । ग्लानि से मन भारी बन जाता है, प्रसन्नता समाप्त हो जाती
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