Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 217
________________ मनुष्य जो भी रहस्य है २०३ के अनुसार मनुष्य में तीन वेद होते हैं-स्त्री, पुरुष और नंपुसक । एक वेद व्यक्त होता है और दो वेद अव्यक्त । वेद का सम्बन्ध कर्म-परमाणुओं से है और अभिव्यक्ति का प्रश्न बाह्य परिस्थितियों से | बाह्य परिस्थिति यदि दूसरे वेद के अनुकूल अधिक होती है तो पूर्ववर्ती वेद दूसरे वेद में विलीन हो जाता है। एक ही जीवन में तीनों वेद एक एक कर अभिव्यक्त हो सकते हैं। - जाति-परिवर्तन की मीमांसा में उरार्वम ने बताया है कि विभिन्न जातियों में, उनके शरीरों की बनावट और अंगों के क्रम में अद्भुत समानता दिखाई देती है | ज्ञान-इन्द्रियां, कर्म-इन्द्रियां; भेदरिक्त नालियां, तन्तु-जाल आदि की स्थिति से ऐसा प्रतीत होता है कि कभी ये जातियां बहुत निकट थीं। यह प्रश्न भी उनके सामने रहा है कि चिह्नों की यह विभिन्नता कैसे उत्पन्न होती है ? विभिन्नता का हेतु कर्मवाद के आधार पर भी इस प्रश्न पर विचार किया गया है। वह कोरा दार्शनिक सिद्धान्त नहीं है । अनेक तथ्यों का संकलन करने के पश्चात् उसके निष्कर्ष पुष्ट हुए हैं, इसलिए यह वैज्ञानिक पद्धति है। विभिन्नता का हेतु कर्म-परमाणु और बाहरी वातावरण दोनों है । कर्म-परमाणुओं से प्राणी का किसी प्रमुख जाति में जन्म होता है और उसके अनुकूल ज्ञान-इन्द्रियां, कर्म-इन्द्रियां विकसित होती हैं । शरीर की रचना, रूप, रंग आदि में जो विविधता आती है, उसमें कर्म-परमाणुओं की अपेक्षा बाह्य परिस्थिति का कर्तृत्व प्रधान है । उदाहरण के लिए हम मनुष्य-जाति को लेते हैं। मनुष्य-जाति एक है । पाँच इन्द्रिय, कर्म, त्रैकालिक, दीर्घकालिक संज्ञान-सब मनुष्यों में होता है पर उनकी आकृतिरचना और बाहरी अभिव्यक्ति में बहुत बड़ा अन्तर होता है। विचित्र शरीर रचना भौगोलिक कारणों से मनुष्य में जो अन्तर होता है, उसकी जैन साहित्य ने एक तालिका प्रस्तुत की है। उसके अनुसार पूर्व दिशा में एक जाँघ वाले, पश्चिम में पूँछवाले, उत्तर में गूंगे, दक्षिण में सींगवाले मनुष्य हैं । विदिशाओं में खरगोश के कान सरीखे कान वाले, लम्बे कान वाले और बहुत चौड़े कान वाले मनुष्य हैं । अन्तराल में अश्व, सिंह, कुत्ता, सूअर, व्याघ्र, उल्लू और बन्दर के मुख जैसे मुखवाले मनुष्य हैं। शिखरी पर्वत के दोनों अन्तरालों में मेघ और बिजली के समान मुख वाले, हिमवान् के दोनों अन्तरालो में मत्स्य और काल की मुखाकृतिवाले उत्तर, विजयार्थ के दोनों अन्तों में हस्तिमुख और आदर्श मुखवाले तथा दक्षिण विजयार्थ के दोनों अन्तों में गोमुख और मेषमुख की आकृति वाले मनुष्य हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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