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मनुष्य जो भी रहस्य है
भगवान महावीर ने जब यह कहा कि 'जो एक को जानता है वही सबको जानता है । सबको वही जान सकता है, जो एक को जानता है ।' तब उनके सामने अनेकान्त दृष्टि से सबको एक सूत्र में बाँधने की बृहद् योजना उपस्थित थी ।
विश्व के सब पदार्थ सापेक्ष हैं । इसलिए समग्र दृष्टि से एक को जानने के लिए सबको जानना आवश्यक होता है। हम किसी भी एक तथ्य को इसीलिए पूर्णतः नहीं जानते कि हम सब पदार्थों के सब पर्यायों को पूर्णतः नहीं जानते । पदार्थ अपने आप में स्पष्ट हो । उसकी स्पष्टता और अस्पष्टता का विभाग हमारे ज्ञान-शक्ति पर अवलम्बित है। जहां हमारा ज्ञान नहीं पहुँच पाता, वहीं हमारे लिए रहस्य है। ज्ञात की अपेक्षा अज्ञात अधिक है। प्रगट की अपेक्षा रहस्य अधिक है। हम थोड़े पर्यायों को जानते हैं और ज्ञात पर्यायों के परिपार्श्व में ही हमारी सबकी रेखाएं निर्मित होती हैं । अज्ञात जब ज्ञात होता है तब सत्य नहीं बदलता, पर हमारी सत्य की भाषा बदल जाती है ।
रहस्य है मनुष्य
आश्चर्य यह है कि रहस्यों का उद्घाटन करने वाला मनुष्य है, जो स्वयं आज भी रहस्य बना हुआ है । उसका चैतन्य रहस्य है। उसका अतीत रहस्य है और उसका भविष्य है और उसकी विविधता रहस्य है। भौतिक विज्ञान ने दृश्य उपकरणों के आधार पर मनुष्य के रहस्यों को खोलने का यत्न किया है और जैन दर्शन ने मनुष्य के पौद्गलिक सम्पर्कों के द्वारा उसके रहस्य का उद्घाटन किया है । कर्मवाद मुनष्यों के परिवर्तनों और बहुरूपों का वैज्ञानिक विश्लेषण है ।
आत्मा अरूप है इसलिए वह अव्यक्त है। उसकी अभिव्यक्ति परमाणुओं से होती है । अव्यक्त और व्यक्त जगत् के मध्य की कड़ी कर्म-परमाणु है। उनके द्वारा शरीर रचना होती है । जो व्यक्त जगत् है, वह जीव शरीर या जीवमुक्त शरीर ही है । जो परमाणु जीव- शरीर में परणित नहीं होते, वे स्थूल नहीं बनते ।
शरीर विज्ञान की दृष्टि
शरीर विज्ञान की दृष्टि से स्त्री में पुरुष के तत्त्वांश और पुरुष में स्त्री के तत्त्वांश होते हैं । उस स्त्री का पुरुष में और उस पुरुष का स्त्री में परिवर्तन हो जाता है । कर्मवाद
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