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कार्यकर्ता की पहचान
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सहा, किसी पर भी आक्रोश नहीं किया । हम आचार्य भिक्षु की बहुत विशेषताएं जानते हैं, किन्तु उनकी सबसे बड़ी विशेषता है— सहिष्णुता कहा गया- खमा सूरा अरहंतातीर्थंकर क्षमाशूर होते हैं। .
- भगवान महावीर ने कितना सहन किया ! आचार्य भिक्षु ने क्या-क्या नहीं सहा । विरोध श्रद्धा में बदल गया
गुरुदेव दक्षिण की यात्रा पर थे । मार्ग में एक टीचर्सट्रेनिंग कॉलेज के अध्यापक हाथ में काले झंडे लिए खड़े थे । संतों ने पूछा- यहां क्या कर रहे हैं ? अध्यापक बोलेआचार्य तुलसी आ रहे हैं, हिन्दी का प्रचार कर रहे हैं । हम उन्हें काले झण्डे दिखा रहे
संतों ने कहा- कोई आपत्ति नहीं है । क्या फर्क पड़ता है ? हम काला पीलासब देखते हैं
'क्या हम काला झंडा दिखा सकते हैं ? 'हमें कोई कठिनाई नहीं है।'
अध्यापक यह सुन कर अवाक् रह गए | संत आगे बढ़ गए । कुछ ही देर में आचार्यश्री पधार गए । पता नहीं क्या हुआ काले झंडे गायब हो गए । अध्यापक ने प्रार्थना की- आप हमारे कॉलेज में प्रवचन करें । आचार्यश्री ने कहा- मैं तमिल भाषा नहीं जानता ।
'आप अपनी भाषा में बोलें ।' विरोध का स्वर श्रद्धा में परिणत हो गया । सहिष्णुता का कवच बनाएं
व्यक्ति सहन करना सीख जाए तो प्रतिकूल स्थितियां अनुकूल बनती चली जाती हैं । थोड़ी-सी समस्या आए, कठिनाई आए और व्यक्ति इस भाषा में बोल जाए.... मैं अब काम नहीं करूंगा । मैं ऐसी स्थिति में काम नहीं कर सकता । यह कार्यकर्ता की पहचान नहीं बननी चाहिए । कार्यकर्ता को सहिष्णु बनना चाहिए । वज्रपंजर बनना चाहिए।
मंत्र साधक मंत्र साधना से पहले पंजर की साधना करता है । जो वज्र पंजर या कवच की साधना में सफल नहीं हो सकता | मंत्र साधना में बहुत समस्याएं आती हैं, विघ्न बाधाएं आती हैं । यदि व्यक्ति वज्र पंजर का निर्माण कर लेता है, तो फिर भूत आए, पिशाच या राक्षस आए, कोई भी उसे भेद कर प्रवेश नहीं कर सकता ।
कार्यकर्ता के लिए सहिष्णुता का वज्रपंजर बनाना जरूरी है । जब तक कार्यकर्ता सहनशील नहीं होगा, वह धैर्य और शांति का परिचय नहीं दे पाएगा । अनेक व्यक्ति थोड़ीसी विपरीत स्थिति आते ही अधीर और विचलित हो जाते हैं । व्यक्ति सोचता है— अमुक व्यक्ति ने मेरा अपमान कर दिया, मैं अब सभा में नहीं जाऊंगा, संगोष्ठी में भाग नहीं लूंगा । हम अतीत को देखें । अपमान किसका नहीं हुआ ?
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