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समस्या को देखना सीखें
जीतें मधुर वाणी से
श्रीकृष्ण के समय की घटना है । गणतंत्र के सहभागी भोज आदि राजा कृष्ण का अपमान कर देते । एक बार कृष्ण घबरा गए । सोचा- क्या करें ? चिन्तन की मुद्रा में उदास बैठे थे । नारद जी आए। पूछा- उदास क्यों हो? कृष्ण ने कहा- सोचता हूं- इस राजतंत्र के सारे झंझटों को छोड़ दूं । 'कुकर, भोज आदि परेशान कर देते हैं। मैं काम कैसे करूं?'
नारदजी बोले – कृष्ण ! तुम ठीक नहीं सोच रहे हो । शत्रु होता है तो कोई शस्त्र चलाकर उसे शान्त कर देते, किन्तु यहां घरेलू मामला है, जो विरोध कर रहे हैं, वे अपने हैं । उन्हें शस्त्र से नहीं, मधुर वाणी से जीतो ! ___कार्यकर्ता के जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आते हैं, तिरस्कार और पुरस्कार के क्षण आते हैं । इन सब को सह लेना ही कार्यकर्ता की कसौटी है । कार्यकर्ता को यह सोचना चाहिए- यह घरेलू मामला है, समाज का प्रश्न है, यहां असहिष्णुता काम नहीं देगी । मधुर और मृदुभाषा से ही इन स्थितियों से बचा जा सकता है। सहिष्णुता का प्रशिक्षण व्यक्ति के चिन्तन को परिष्कार देता है, उसे मृदु और मधुर बनने की अभिप्रेरणा देता है । प्रशिक्षण का मूल्य
कार्यकर्ता के प्रशिक्षण के लिए इन तीन बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करना अपेक्षित
१. परार्थ की चेतना का विकास । २. संवेदनशीलता की चेतना का विकास । ३. सहिष्णुता की चेतना का विकास ।
कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में इनके प्रकोष्ठों को जागृत करने की विधि समझ पाएं, तो कार्यकर्ता को यह अनुभव होगा— कुछ नया घटित हो रहा है , संवेदनशीलता, करुणा और सहिष्णुता के विकास का पथ प्राप्त हो रहा है । उपलब्धि का यह अवबोध और आत्मतोष ही कार्यकर्ता को सही अर्थ में कार्यकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है। कार्यकर्ता प्रशिक्षण क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर प्रशिक्षण की इस साधना में छिपा है । हम इसका मूल्यांकन करें , प्रशिक्षण का मूल्य स्वतः स्पष्ट होता चला जाएगा ।
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