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समस्या को देखना सीखें
'ये कहने से नहीं मानते, कुछ आ बीतती है तब मानते है'- कहते-कहते सेठ ने सुख की साँस ली । उसका गर्व सीमा पार कर गया । वह बोला- 'पहले शान्त रहता तो क्यों जाना पड़ता ?' परिचारक बोला- 'शान्त तो वह मरकर ही हुआ है।'
'क्या मर गया ?' 'जी, मर गया ।' 'कौन था वह ?' 'आप ही जानें ।'
सेठ उठा, बाहर आया । उसने परिचारक से पूछा- गांव, नाम और पिता का नाम ।' सुनकर सेठ के प्राण भीतर के भीतर और बाहर के बाहर रह गए । अब वह अपने पुत्र के लाए आँसू ही बहा सकता था । स्वयं को अच्छा बनाएं
धर्माचरण के लिए मनुष्य को दूसरों की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए । सबको अच्छा बनाकर अच्छा बनने की बात वैसी ही है कि 'न तो नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी'। हर आदमी अपने को अच्छा बनाने की बात सोचे और वह वैसा बने तो दुनिया अपने आप अच्छी बन जाए। .
एक दिन एक राजा के पैर में कांटा चुभ गया । बहुत पीड़ा हुई । उसने सोचाजैसे मेरे पैर में कांटा चुभा, वैसे औरों को भी चुभता होगा । चिन्तन में डुबकी लगातेलगाते उसने मन्त्री को बुलाया । वह उपस्थित हुआ । राजा ने कहा, मन्त्री ! मेरे आदेश का पालन करो और समूची पृथ्वी पें चमड़ा मढ़ा दो, जिससे किसी के पैर में कांटा न चुभे ।' मन्त्री ने मुसकराते हुए कहा- 'यह असम्भव है, महाराज ! सब लोग अपनेअपने पैरों में चमड़ा पहन लें, पृथ्वी अपने आप चमड़ा मढ़ी हो जाएगी।
गर्मी के दिन थे । दोपहरी की बेला थी । चिलचिलाती धूप थी । सूर्य अग्नि फेंक रहा था । राजा को बाहर जाना पड़ा । उसे बहुत कष्ट हुआ । उसने सोचा । जैसे मुझे धूप में कष्ट हुआ है, वैसे औरों को भी होता हागा । कितना अच्छा हो मैं समूचे आकाश को वस्त्र से आच्छादित कर दूं । राजा ने मन्त्री का बुलाकर कहा- 'मेरी आज्ञा का पालन करो और समूचे आकाश में चंदोबा तान दो, जिससे किसी को धूप न लगे ।' मन्त्री ने मुस्कराते हुए कहा- 'यह असम्भव है, महाराज ! सब लोग अपने अपने सिर पर छाता रख लें, चंदोवा अपने आप तन जाएगा।'
चरित्र का विकास वही आदमी कर सकता है, जो१. दूसरों के हाथ का खिलौना नहीं बनता । २. दूसरों के बटखरों से अपने को नहीं तोलता । ३. दूसरों के पैमाने से अपने को नहीं नापता । अपनी स्वतन्त्र दृष्टि से चरित्र का मूल्य आँककर उसका विकास चाहता है।
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