Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 210
________________ १९६ समस्या को देखना सीखें . दूसरों के हित के विघटन से स्वयं के हित का सधना । प्रथम प्रवृत्ति मूर्खतापूर्ण और अवांछनीय है । परन्तु दुनिया में ऐसे लोगों की भी नहीं है। विघटन की मनोवृत्ति पुराने जमाने की बात है । एक लोभी और एक ईलुि आदमी देवी के मन्दिर म। दोनों ने भक्ति के साथ देवी की आराधना की । वह प्रसन्न होकर बोली- तुम जो चाहो वह माँग लो । पर एक बात है- जो पहले मांगेगा उससे दूसरे को दूना मिलेगा ।' दोनों एक-दूसरे से पहले माँगने का आग्रह करने लगे । लोभी दूने धन का लोभ संवरण कैसे कर सकता था? ईर्ष्यालु इसे कैसे सहन कर लेता कि वह उससे दूना धन पा जाए? दोनों अपने-अपने स्वभाव पर अड़े रहे । काफी समय बीत गया पर पहले मांगने को कोई तैयार नहीं हुआ | आखिर ईर्ष्यालु उत्तेजित हो उठा । वह बोला— 'माँ, यह बड़ा लोभी है । यह कभी भी मांगने की पहल नहीं करेगा । अब मैं ही पहल करता हूँ ।' देवी ने कहा 'अच्छी बात है। तुम मांगो ।' वह बोला- 'माँ ! मेरी एक आँख फोड़ डालो।' देवी ने कहा- 'तथास्तु ।' ईष्यालु काना हो गया। अब घबराया । वह बोला- 'माँ, मेरी दोनों आँख मत फोड़ डालना ।' देवी ने कहा- 'मैं अपनी प्रतिज्ञा को कैसे तोड़ सकती हूं ?' उसने लोभी की दोनों आँखें फोड़ डाली । वह अन्धा हो गया । लोभी को अंधा बनाने के लिए ईष्यालु काना हो गया । यह स्व और पर- दोनों के हितों के विघटन की मनोवृत्ति है । इससे समाज का धरातल नीचा होता है। परहित की उपेक्षा : स्वहित का विघटन सामाजिक हित इतने जुड़े हुए हैं कि बहुत बार मनुष्य दूसरों के हित की उपेक्षा कर अपने हित का विघटन कर लेता है । यह अज्ञानवश होता है पर बहुत बार होता दो मित्र थे । एक था माली और दूसरा कुम्हार । उनकी मित्रता का आधार स्वार्थों का समझौता था । एक दिन वे दोनों अपने गांव से शहर में जा रहे थे । पास में एक ऊँट था । उस पर माली की सब्जी और कुम्हार के घड़े लदे हुए थे । माली के हाथ में ऊँट की नकेल थी । वह आगे चल रहा था और कुम्हार पीछे चल रहा था। रास्ते में चलतेचलते ऊँट पीछे मुड़कर सब्जी खाने लगा । कुम्हार ने देखा पर कुछ किया नहीं । उसने सोचा- सब्जी खाता है । इसमें मेरा क्या बिगड़ता है । माली ने मुड़कर देखा नहीं । ऊँट बार-बार खाने लगा। घड़ों के चारों ओर सब्जी बंधी हुई थी। सब्जी का भार कम होते ही संतुलन बिगड़ गया । सब घड़े नीचे आकर गिरे और फूट गएं । __ माली का हित कुम्हार के हित की रक्षा कर रहा था । कुम्हार ने अपने हित की अपेक्षा करने में माली के हित की उपेक्षा की थी किन्तु उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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