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व्यवस्था परिवर्तन और हृदय परिवर्तन
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है । व्यक्ति की स्वतन्त्रता जिस दिन पनपी उसी दिन व्रत का विकास हुआ है । व्रतों की भावना को अणुव्रत आन्दोलन ने प्रस्तुत कर एक नया आयाम खोला है | धर्म की रूढ़ भावना बन गई थी उसे नैतिकता की नई दिशा दी है । हर व्यक्ति गहराई से सोचे और अणुव्रत की पृष्ठभूमि में रहे दर्शन को समझे । व्रतों से प्रकाश की रश्मियां अवश्य मिलेंगी।
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