Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 202
________________ १८८ समस्या को देखना सीखें गोल्डन जुबली मनाई जा रही थी । महाराजा के निवेदन पर आचार्यश्री ने उस वर्ष का चातुर्मास बीकानेर किया । उस अवसर पर एक व्यक्ति ने ऐसा ही प्रदर्शन किया । मंच के पास सरसों का ढेर था। वह मंच पर नाचते नाचते सरसों के ढेर पर नाचने लगा । एक भी दाना इधर-उधर नहीं हुआ । यदि लघिमा सिद्ध हो जाए तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? जैन आगमों में जंघाचारण, विद्याचारण आदि अनेक सिद्धियों का उल्लेख है । गौतम स्वामी के मन में इच्छा जागी- अष्टापद पर जाना है । सूरज की किरणों को पकड़ा और सीधे हिमालय की चोटी पर चढ़ गए । पैरों से चढ़ते तो न जाने कितने दिन लगते । आजकल एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले यात्रियों को कितने दिन लगते हैं ? गौतम स्वामी कुछ दिनों में ही नहीं, कुछ मिनिटों ही हिमालय के शिखर पर पहुंच गए। यह संभव होता है प्रशिक्षण के द्वारा । प्रशिक्षण की अनेक विधियां, प्रविधियां हैं। प्रशिक्षण वह है, जो मस्तिष्कीय शक्ति को जगाने का, मस्तिकीय कोष्ठों को खोलने का माध्यम बने । जब तक कार्यकर्ता मस्तिष्क के प्रकोष्ठों को जागृत करने की विधियों प्रविधियों को नहीं जानता, उनका अभ्यास नहीं करता, तब तक बड़ा कार्यकर्ता नहीं बन सकता । परार्थ की चेतना जागे महाराष्ट्र के एक कार्यकर्ता है शांतिलाल मूथा । व्यवसायी हैं पर व्यवसाय से ज्यादा दिमाग कार्यकर्ता का है । जैन संघटना का अध्यक्ष है । महाराष्ट्र में भूकंप आया । हजारों बच्चे अनाथ हो गए । ऐसे चौदह सौ बच्चों को पढ़ाने -लिखाने और संस्कारित करने की जम्मेवारी उसने ओढ ली । जैन संघटना के इस कार्य की मुख्यमंत्री ने प्रशंसा करते हुए जमीन देने की पेशकश की । समस्या यह थी— इतने बच्चों को कहां रखा जाए | पूना में शांतिलालजी अपना मकान बना रहे थे । उसमें एक बार सारे बच्चों के रहने का प्रबंध कर दिया । परार्थ की चेतना के विकास के बिना व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। कार्यकर्ता के प्रशिक्षण का पहला बिन्दु है— स्वार्थ का जो कोष्ठ खुला है, उसे बन्द कर दें । परार्थ और परमार्थ का जो कोष्ठ बन्द पड़ा है, उसे खोल दें । . आज स्वार्थ का दरवाजा इतना चौड़ा हो गया है कि उसे पूरा बन्द करना बहुत मुश्किल है, किन्तु यदि वह दरवाजा थोड़ा संकड़ा हो जाए, परार्थ का दरवाजा कुछ उद्घाटित हो जाए तो कार्यकर्ता यथार्थ में कार्यकर्ता बन जाए । कार्यकर्ता के प्रशिक्षण का उद्देश्य है- परार्थ और परमार्थ की चेतना को जगाना संवेदनशीलता का विकास प्रशिक्षण का दूसरा बिन्दु है— संवेदनशीलता का विकास | समाज का अर्थ है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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