________________
१८०
आत्मानुशासन की गंध कहां है ?
आत्मानुशासन की जन्मभूमि है शिक्षा संस्थान । वहां राष्ट्र की नयी पौध का निर्माण होता है । उसकी स्थिति भी स्वस्थ नहीं है । वहां विलास, फैशन और स्वच्छन्दता का इतना प्रबल अस्तित्व है कि आत्मानुशासन की एक अस्फुट रेखा भी नहीं दिखाई देती ।
धर्म का क्षेत्र आत्मानुशासन का मुख्य क्षेत्र है । स्वार्थों का संघर्ष वहां भी अपनी जड़ें जमा चुका है । इसलिए उसकी तेजस्विता भी संदिग्ध हो चुकी है । एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि एक साधू कहता है, मेरा नाम पहले क्यों नहीं आया ? उसका पहले क्यों आया ? कोई कहता है, प्रमुख मैं हूं, उसे प्रमुखता क्यों दी गई ? इस वातावरण में आत्मानुशासन की गंध ही कहां है ?
समस्या को देखना सीखें
यह स्थिति का प्रत्यक्ष दर्शन है । इसके द्रष्टा अनेक लोग हैं । हम द्रष्टा रहकर स्थिति को नहीं बदल सकते । उसमें अपने संयम की आहुति देकर ही बदल सकते हैं । आज यह बहुत अपेक्षित है कि सब लोग आत्मानुशासन का संकल्प लें और जन-जन को यह समझाएं कि स्वतन्त्रता का अर्थ है, आत्मानुशासन का विकास ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org