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समस्या को देखना सीखें
वह प्रकाश बल्ब का नहीं, तार द्वारा पावर हाउस से आ रहा है। यदि तार का बल्ब से संबंध टूट जाए तो बल्ब का प्रकाश समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार मनुष्यता का तार छूटने से मनुष्य क्रूर हो जाता है। आदमी का आदमी से सम्बन्ध धर्म के बिना नहीं हो पाता है ।
धार्मिक की दयनीय स्थिति
लोगों ने नाम रटना, मंदिर, संत दर्शनों तक ही धर्म को सीमित कर दिया । इन बाह्य उपासनाओं और क्रियाकांडों में ही धर्म की इतिश्री मानकर बैठ गये । भले ही वे क्रूरता, धोखेबाजी, ईर्ष्या, अन्याय करते हों किन्तु माला जपकर, मंदिर जाकर, आरती और पूजा कर वे धार्मिक बन जाते हैं । आज के धार्मिक की स्थिति दयनीय है । वह धार्मिक बनता है किन्तु क्रूरता भी करता है । क्या धार्मिकता और क्रूरता एक साथ टिक सकती हैं ? धर्म से मोक्ष, स्वर्ग, धन, परिवार आदि मिलता है— यह लालच लोगों में है किन्तु इसे भी वे बिना किसी परिश्रम, त्याग एवं बलिदान के ही प्राप्त करना चाहते हैं। केवल पैसों से ही धर्म खरीदना चाहते हैं। आराम का आराम और केवल थोड़ा सा राम नाम । बस इतना ही पर्याप्त समझकर सब कुछ पाना चाहते हैं किन्तु यह सम्भव नहीं है। जब तक हम अपने संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर सही चिंतन नहीं करेंगे तब तक धर्म को नहीं पा सकेंगे ।
मनुष्यता का सूत्र
एक पागल था । उसे यदि कोई पीछे से मुक्का मारता तो बिना कुछ सोचे-समझे अपने से आगे चलने वाले को वह भी मुक्का मार देता । वह यह नहीं सोचता कि मुझे किसने मुक्का मारा है । वह तो यही जानता है कि उसे मुक्का मारा गया है इसलिए वह भी दूसरे को मुक्का मारेगा। आज के धार्मिक भी इसी प्रकार बिना सोचे-समझे क्रिय कर रहे हैं । अतीत और वर्तमान, दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे देखकर चतुर्दिक विचारों को जाने बिना हम सत्य को नहीं पा सकते ।
हम आगे बढ़ने की कामना करते हैं किन्तु एक को ठुकराकर दूसरा आगे नहीं बढ़ सकता । दूसरों के सत्य को भी जानना और समझना जरूरी है । समानता और समता का वातावरण पैदा करना होगा। आज केवल पाप-पुण्य के नाम पर विसंगति नहीं चल सकती । 'बुराइयां ज्यादा नहीं चल सकतीं, इस सत्य को अनुभव करना होगा अन्यथा हिंसा को रोकना कठिन होगा । व्यक्ति अपने अंदर मानवता के सूत्र को कायम रखते हुए स्वार्थों को सीमित बनाएं । मनुष्यता का सूत्र जब तक है तभी तक मनुष्य मनुष्य है |
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