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समस्या को देखना सीखें
लांघ जाता है । उसे उस सुख की अनुभूति होती है, जो चक्रवर्ती सम्राट को भी नहीं होती | अपने जीवन को प्रयोगशाला बनाकर यह निर्णय कीजिए कि जिन मान्यताओं को आप स्वीकार किए हुए हैं, वे काल्पनिक हैं या यथार्थ ? एक बार मन को सेवक मानकर अवश्य परीक्षा करनी चाहिए । मैं आपको यह परमार्श नहीं दे सकता कि आप शरीर-सुख और इन्द्रिय-सुख की ओर सर्वथा ध्यान न दें किन्तु इतना सा परामर्श अवश्य दूंगा कि आप मन को सेवक मानकर चलें, स्वामी मानकर नहीं ।
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