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अन्तरात्मा
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जे समदृष्टि जीवड़ा, करे कुटुम्ब प्रतिपाल ।
अन्तर में न्यारा रहे, ज्यूं धाय खिलावे बाल । करुणा के निदर्शन
अन्तरात्मा का तीसरा लक्षण है- करुणा । जब आसक्ति कम होती है करुणा जाग जाती है । अन्तरात्मा क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं कर सकता । श्रीमद्राजचन्द्र को देखें, जिन्होंने कहा था- राजचन्द्र दूध पी सकता है, किसी का खून नहीं पी सकता । उत्तमचन्दजी बैंगाणी का देखें, जिन्होंने कहा था- जिस अशुभ हीरे के कारण मुझे पुत्र वियोग का दुःख झेलना पड़ रहा है, उस हीरे को बेचकर मैं किसी भी पिता को पुत्र वियोग से दुःखी देखना नहीं चाहता । मैं इसे बेचने के वनिस्पत कुएं में डालना पसंद करूंगा । ये हैं करुणा के निदर्शन । जिसमें करुणा जाग जाती है, उसकी भावना बदल जाती है। मानसिक अशांति का प्रश्न
अन्तरात्मा का पांचवां लक्षण है.. मानसिक शांति । उसके मन में बड़ी शांति रहती है । कभी अशांति आती ही नहीं।
तत्त्वार्थसूत्र का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है- परस्परोदीरितदुःखाः । नरक के प्रसंग में आचार्य उमास्वाति ने लिखा- नरक में जो नारक हैं, वे परस्पर एक-दूसरे को दुःख देते हैं । नारक हैं, उनमें अवधिज्ञान का विभ्रम होता है । परिणामतः उनके भावों में आवेश होता है, उनके कषाय प्रबल होते हैं और वे परस्पर एक दूसरे के दुःख की उदीरणा करते हैं, एक-दूसरे को सताते रहते हैं । जो सम्यग्दृष्टि नारक हैं, वे परस्पर दुःखी नहीं होते क्योंकि वे सोचते रहते हैं हमने जो पाप किया, उसका परिणाम आज भुगत रहे हैं । अब ऐसा कोई काम नहीं करना है, जिससे आगे भी कष्ट भोगना पड़े। वे निरन्तर इस चिन्तन में अपनी आत्मा को लगाए रखते हैं । इसलिए वे परस्पर दुःख की उदीरणा नहीं करते।
मिथ्यादृष्टि नारक दो प्रकार का दुःख भोगता है । एक क्षेत्र के अनुभव से होने वाला सर्दी और गर्मी का दुःख । दूसरा परस्पर उदीरणा से होने वाला दुःख । सम्यग्दृष्टि एक ही प्रकार का दुःख भोगता है वह केवल क्षेत्र की संयोजना से होने वाला दुःख भोगता है, शेष सारे दुःखों से बच जाता है | दृष्टिकोण के बदलाव से यह अन्तर घटित होता
है।
दृष्टि का भ्रम टूटे
हम इस तथ्य को पारिवारिक और सामाजिक संदर्भ में देखें । परिवार में कलह हो जाता है, समस्याएं उभर जाती हैं । यदि गहराई में जाएं तो इसका प्रमुख कारण दृष्टिकोण का गः।। होना है । अगर दृष्टिकोण सम्यक् बन जाए तो कलह का बहुत निवारण हो जाए । जो व्यक्ति अपना आत्मनिरीक्षण करेगा, अपने आपको देखेगा, वह केवल दूसरे
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