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समस्या को देखना सीखें
की कमी को देखकर उस पर हावी नहीं होगा। यह अन्तर्दर्शन या सम्यग्दर्शन पारिवारिक सामाजिक और संस्थागत झगड़ों को समाप्त करने का बहुत बड़ा उपाय है । आदमी का दृष्टिकोण बदलता है तब समस्याएं सुलझती हैं। अधिकांश समस्याएं भ्रमवश उलाती हैं। जो शरीर को ही आत्मा मानता है वह भ्रम में है । इस भ्रम के टूटते ही मानसिक अशांति अपने आप समाप्त हो जाए ।
हमारी आत्मा की दूसरी अवस्था है— अन्तरात्मा होना । बहिरात्मा को अतिक्रान्त कर अन्ात्मा में चले आना, बाहर ही बाहर चक्कर लगाना बन्द कर अपनी आत्मा में आ जाना, अपने घर में आ जाना। जो व्यक्ति अन्तरात्मा की सन्निधि में आ जाता है सचमुच उसकी भ्रांतियां टूट जाती हैं, वह सदा मानसक शांति का जीवन जीना सीख लेता है ।
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